‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 189..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 189 वी कड़ी ….

           षोडशोऽध्यायः – ‘देवासुर सम्पत्ति विभाग योग’

    अध्याय सोलह – ‘दैवीय और आसूरी मन का स्वभाव’

 परमेश्वर से सम्बन्ध रखने वाले तथा उनको प्राप्त करा देने वाले सद्रुणों और सदाचारों का; उन्हें जानकर धारण करने के लिए दैवी सम्पदा का वर्णन असुरों के दुर्गुण और दुराचारों का वर्णन । उन्हें जानकर त्याग करने के लिए आसुरी सम्पदा के नाम से वर्णन ।

श्लोक  (११)

वे मान रहे जीवन उनको, सुख-भोग तृप्ति के लिए बना,

वे चाह रहे अन्तिम क्षण तक, अपनी इन्द्रियाँ तृप्त करना ।

विस्तार रहा चिन्ताओं का, भोगाग्नि न होती शान्त कभी

अतृप्त वासना चिन्ता में, जलते रहते वे असुर सभी ।

 

जो चलें चिता तक साथ उन्हीं, चिन्ताओं को लेकर चलते,

वे इतनी बोझिल रहीं पार्थ, उनके ही भार तले दबते ।

कर सकें कामना को पूरी, यह प्यास रही, यह ही चिन्ता,

ऐसा झूठा संसार रहा, पग-पग पर मायामृग छलता ।

 

पर ऐसे रहे विमोहित वे, इच्छाओं का संसार रचें,

पूरी हो तो फिर प्यास बढ़े, पूरी न हुई तो शोक करें ।

सर्वोच्च लक्ष्य मानें उनको, तन-मन उसमें ही खपा चलें,

बस जीवन का सुख इतना ही, इसको ही पाने जनम धरें।

 

चिन्ताओं से न विमुक्त हुए, जीवन पर्यन्त रहा घेरा,

वे विषय-भोग की बस्ती में, डाले रहते अपना डेरा ।

इतना ही सुख है जीवन में, वे ऐसा निश्चय कर बैठे

जीवन है भोग भोगने को, वे असुर पुरुष ऐसा कहते ।

 

सामान विषय भोगों के सब, वह एकत्रित करता रहता,

जीवन का केवल लक्ष्य एक, वह तृप्त वासना को करता ।

केन्द्रित सब कार्य-कलाप रहे, उसके इन्द्रिय-सुख पाने में,

रति-क्रीड़ा में, मन-रंजन में, आमोद-प्रमोद जुटाने में ।

 

भौतिकवादी सिद्धांत यही, कहता है, खाओ और पियो,

चिन्ता न करो, आनन्द करो, जग सुखमय है, सुख को भोगो।

कुछ भी न विचारो पाप पुण्य, कल मिट्टी में मिल जाना है,

लेकर उधार घृत पान करो, फिर किसे दुबारा आना है। क्रमशः….