‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 199 ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 199 वी कड़ी ….

           षोडशोऽध्यायः – ‘देवासुर सम्पत्ति विभाग योग’

    अध्याय सोलह – ‘दैवीय और आसूरी मन का स्वभाव’

 परमेश्वर से सम्बन्ध रखने वाले तथा उनको प्राप्त करा देने वाले सद्रुणों और सदाचारों का; उन्हें जानकर धारण करने के लिए दैवी सम्पदा का वर्णन असुरों के दुर्गुण और दुराचारों का वर्णन । उन्हें जानकर त्याग करने के लिए आसुरी सम्पदा के नाम से वर्णन ।

श्लोक  (२३)

पर शास्त्र-नियम को छोड़ मनुज, यदि अपनी इच्छापूर्ण करे,

उससे जानो सात्विकता का, यह मार्ग मुक्ति का नहीं सधे ।

होती न पूर्णता प्राप्त उसे, सुख से भी वह वंचित रहता,

दुर्लक्ष्य हुआ अपने श्रम से, वह केवल अधःपतन गहता ।

 

विस्मृत जिसको कर्तव्य ज्ञान, करता जो केवल मनमानी,

जो करे शास्त्र की अवहेला, जो आप बना फिरता ज्ञानी ।

हर काम कामना सहित करे, उसको न सिद्धि या सुख मिलता,

कल्याण नहीं होता संचित, अति दूर परमगति से रहता ।

 

करणीय रहा क्या अकरणीय, इसका प्रमाण रे शास्त्र रहे,

शास्त्रों का सच्चा ज्ञान रखे, उनके इंगित पर कर्म करे ।

उनके विधान नियमों का ही, परिपालन कर व्यवहार करे,

वह सफल बना लेता जीवन, जो शास्त्रों को नियामक समझे ।

 

हो सही कर्म का ज्ञान उसे, इच्छा प्रेरित हो कर्म नहीं,

पर अन्तर्दृष्टि जागती जब रह जाता कोई नियम नहीं ।

हो जाती सहज प्रवृत्ति, कार्य, उसके द्वारा प्रेरित चलते,

प्रेरित जो आत्मा से रहते, उन पर न नियम कोई लगते । क्रमशः….