‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 211 ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 211 वी कड़ी ….

       सप्तदशोऽध्यायः – ‘श्रद्धात्रय विभाग योग’ अध्याय सत्रह – ‘श्रद्धा तत्व पर लागू किये गए तीनो गुण’

श्लोक  (२१)

पर दान दिया भारी मन से, या क्लेश समझकर दिया गया,

या बदले की आशा लेकर, जब दान किसी को किया गया।

फल की इच्छा लेकर कोई, जब दान किया जाता अर्जुन,

वह दान राजसी कहलाता, रहता सकाम दानी का मन ।

 

जिसमें दानी की फलासक्ति, सप्रयोजन जिसका दान रहा,

या प्रत्युपकारी आशा से, जाए जब कोई दान किया ।

या किसी दबाववश किया दान, वह दान राजसी हो जाता,

मन विमल न रहता दाता का, कर्तव्य नहीं वह हो पाता ।

 

जैसे गौ का पालन-पोषण, पाने को दूध किया जाए,

या रोगी का उपचार करे, इसलिये कि वह पैसा पाए।

या करे बीज का वपन खेत में, नई फसल की आशा से,

ऐसे जो दान किए जाते, वे दान-राजसी कहलाते ।

 

यह दान प्रतिष्ठित लोगों में मेरी, गिनती करवायेगा,

सम्मान मिलेगा बहुत बड़ा, जग में दानी कहलाउँगा ।

जैसी दाता की मनोवृत्ति, जैसी होती उसकी श्रद्धा,

जो दान दिया जाता उससे, वह वैसे गुण का कहलाता । क्रमशः….