सप्तदशोऽध्यायः – ‘श्रद्धात्रय विभाग योग’ अध्याय सत्रह – ‘श्रद्धा तत्व पर लागू किये गए तीनो गुण’
अर्जुन
– श्रद्धायुक्त पुरुषों की निष्ठा ?
भगवान – तीन प्रकार की श्रद्धा, पूजा, यज्ञ, तप में श्रद्धा का सम्बन्ध श्रद्धा रहित पुरुष के कर्म असत, :- श्रद्धामय विभाग योग,
श्लोक (१)
पूर्वाः- श्री कृष्णचन्द्र ने बतलाया, कर्मो का रहे प्रमाण शास्त्र,
करणीय कर्म क्या अकरणीय, यह निश्चित करते वेदशास्त्र ।
अविहित कर्म निष्फल होते, जो विहित वही सुख देते हैं,
करने से पहिले कर्म सुजन, शास्त्रों का निर्णय लेते हैं।
मनमाने कर्म व्यर्थ होते, यह उचित, किन्तु ऐसे भी जन,
जो शास्त्र न जानें या विधि को, पर श्रद्धापूर्वक करें यजन ।
उनकी क्या स्थिति होती है, जो श्रद्धावान कर्म करते,
कारणवश लेकिन शास्त्रों का, निर्देशन प्राप्त नहीं करते? ।
अर्जुन उवाच:-
अर्जुन ने पूछा हे भगवन् उसको किसमें समझा जाए?
सतगुण में, या कि रजोगुण में, या तमोगुणी समझा जाए?
उनको जो शास्त्र-विधान हीन, पालन न शास्त्र-विधि का करते,
पर अपनी मति से उचित समझ, जो श्रद्धा सहित यजन करते?
जिज्ञासा करता है अर्जुन, हे कृष्ण, मनुज रखता श्रद्धा,
करता यज्ञों का अनुष्ठान, देवों की भी करता पूजा ।
पर शास्त्र विधान नहीं पाले, इसलिए कि अज्ञ वह त्याग करे,
उसकी होती है कौन दशा, कैसा उसका वह कर्म रहे?
यह नहीं कि करता तिरस्कार, या करे उपेक्षा त्याग करे,
प्रतिकूल परिस्थिति हो सकती, उसको न शास्त्र का ज्ञान रहे।
कर सके न अध्ययन अथवा श्रम, अवकाश न हो, मति साथ न दे,
या समाधान करने वाला, उसको न उचित आधार मिले ।
शास्त्रोक्त कर्म कर सात्विक जन होते विमुक्ति के अधिकारी,
तामसी पाप करके अनेक, भोगे नरकों के दुख भारी ।
तम मिश्रित राजस लोग उन्हें अविहित कर्मो का फल न मिले,
पर श्रद्धाभाव रहा जिसमें, वह किस गुण का प्रतिफलन करें?
शास्त्रों का ज्ञान अपार रहा, है कठिन बहुत इसका साधन,
वन्चित बमुमुक्ष जो मन्दबुद्धि, करते उर में श्रद्धा धारण ।
क्या है उपाय कोई उनको, जो भव सागर से तार सके,
जीवन के कष्टों से उनको, जो साधन सहज उबार सके ।
अभ्यास हेतु उपयुक्त देश, का मिलना होता है दुष्कर,
अवकाश नहीं पर्याप्त मिले, गुरु का मिलना भी है दुष्कर ।
सामग्री का रहता अभाव, अनुकूल न होते पूर्व-कर्म,
वन्चित साधारण ज्ञान रहे, सम्भाव्य न पाना उसे मर्म ।
निष्णात शास्त्र के ज्ञातागण, आदर्श छोड़ जो चले गए,
उनके प्रति श्रद्धाभाव लिए, आदर्शों को जो साध चले ।
वह दान यज्ञ तप करे सभी, श्रद्धालु शास्त्र अध्ययन के बिन,
सत, रज, तम तीनों में से क्या, गति प्राप्त रहे उसको भगवन । क्रमशः….