आकाश में दोबारा नहीं चमकेगा यह तारा..

विनम्र श्रद्धांजलि….

आकाश में दोबारा नहीं चमकेगा यह तारा….  

कहते हैं लोग दुनियां में जन्म लेते हैं और एक निश्चित अवधि के बाद दुनियां को अलविदा कह देते हैं। इन लोगों में चंद लोग ऐसे भी होते हैं,जो दूसरों के लिए भी जीते हैं।ऐसे ही महान व्यक्ति डी के प्रजापति ने छिंदवाड़ा की माटी में जन्म लिया, जो मरते दम तक जिसका जितना बन सका भला ही करते रहे।
बेहद हंसमुख, गौर वर्ण, बेहद सुंदर, लोगों को जोड़कर चलने वाले, जनप्रिय समाजसेवी, बेहतर पत्रकार, हर दिल अजीज डी के प्रजापति अपनी पीड़ा से नहीं दूसरों की पीड़ा से दुःखी होते थे।उनके करीबी लोग उन्हें डी के भाई के नाम से जानते थे।
आज से 24 साल पुराना वाक्या है।

नवभारत संस्थान ने मेरा तबादला भोपाल से छिंदवाड़ा कर दिया।एकदम अजनबी शहर।नवभारत का दफ्तर गुजराती समाज भवन में था। नवभारत के भोपाल वाले कर्मचारियों के अलावा छिंदवाड़ा के पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी भी छिंदवाड़ा में कार्य कर रहे थे।छिंदवाड़ा के सहकर्मियों के मार्फत मेरी पहचान छिंदवाड़ा के सबसे तेज तर्रार,सजग,विद्वान पत्रकार राकेश प्रजापति से हुई।पहली मुलाकात में राकेश उम्र के हिसाब से मेरे अनुज और मित्र बन गए।राकेश के बड़े भाई थे डी के भाई।राकेश ने ही डी के भाई से मुलाकात करवाई। उस समय कन्या महाविद्यालय के सामने प्रेस कांपलेक्स में डी के भाई का दफ्तर था। डी के भाई विक्रय कर के बहुत नामी और बड़े वकील थे। डी के भाई से मित्रता होने के बाद मेरा राकेश से कम डी के भाई से संपर्क ज्यादा हो गया। धीरे धीरे मैं डी के भाई के माता,पिता से परिचित होकर उनके परिवार का सदस्य बन गया।विवेकानंद कालोनी में सप्ताह में एक बार जाना,चाय नाश्ता से लेकर खाना खाना सहज बात थी।

छिंदवाड़ा जैसे शहर में मेरे अकेलेपन के साथी बन गए थे डी के भाई।शाम 4 बजे दफ्तर जाने के पहले दोपहर 12 बजे के बाद बुधवारी के मेरे किराए वाले मकान से निकलकर मैं सीधा डी के भाई के दफ्तर पहुंच जाता था।यह मेरी दिनचर्या थी। डी के भाई के दफ्तर में दशरथ दादा, चित्रकार ध्रुव वानखेड़े, वकील एम मुज्जमिल,श्याम यादव,अनुपम गड़ेवाल, स्व मनमोहन शाह बट्टी सहित दर्जन भर लोग दिन भर महफिल जमाए रहते थे। डी के भाई को ट्रेड यूनियन की नेतागिरी से बेहद लगाव था।वे मजदूरों की व्यथा को ना सिर्फ सुनते थे,बल्कि उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर धरना, प्रदर्शन में शामिल होते थे। कई बार वे गिरफ्तार भी हुए। छिंदवाड़ा में नेरो गेज लाइन से ब्राड गेज लाइन में बदलने के लिए वर्षो चले आंदोलन के सूत्रधार थे डी के भाई ..

पूरे छिंदवाड़ा में बेहद लोकप्रिय डी के भाई समाजवादी नेता शरद यादव, जार्ज फर्नांडिस,मेघा पाटकर के बेहद करीब थे। डी के भाई अपनी जेब से पैसा खर्च कर लोगो की मदद करते थे। डी के भाई मुझे दादा कहकर पुकारते थे। तीन साल बाद छिंदवाड़ा से भोपाल लौटने के बाद डी के भाई से मेरा आत्मीय संबंध बना रहा।कई बार अकेले ,एक बार भाभी के साथ आकर भोपाल में मिले। महीने में एक बार दूरभाष से वार्ता अवश्य होती थी। अब राकेश से वही आत्मीयता है।

डी के भाई से जुड़े इतने संस्मरण मेरे खजाने में है कि एक किताब की शक्ल ले ले। आज डी के भाई को दुनियां से अलविदा हुए दो साल गुजर गए।उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि….

उनके लिए यह शेर मुनासिब है ” बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गए दास्तां कहते कहते “

राम मोहन चौकसे,  वरिष्ठ पत्रकार  भोपाल