दशमोऽध्याय – ‘विभूति योग’
अध्याय दस – ‘परमात्मा सबका मूल है’ ‘उसे जान लेना सबकुछ जान लेना है’
श्लोक (२३)
ग्यारह रुद्रों में मैं हूँ शिव, मैं यक्ष-राक्षसों में कुबेर,
वसुओं में मैं पावक अर्जुन, शिखरों में मैं हूँ शिखर मेरु ।
श्लोक (२४)
हे अर्जुन प्रमुख पुरोहितों में, मैं देव वृहस्पति सुरगुरु हूँ.
सेनापतियों में युद्धेश्वर, मैं कार्तिकेय शिवनन्दन हूँ।
मैं हूँ जलाशयों में जलनिधि, सीमित विभूतियों में महिमा,
आभास मात्र मेरा देतीं, निस्सीम रही मेरी महिमा ।
श्लोक (२५,२६)
मैं भृगु हूँ प्रमुख महर्षियों में, दिव्य ओंकार वाणी में हूँ,
यज्ञों में भगवन्नाम जाप, मैं नगपति अचल नगों में हूँ।
सब वृक्षों में मैं पीपल हूँ, नारद हूँ मैं देवर्षियों में,
गन्धों में चित्ररथ रहा, मैं कपिल मुनी हूँ सिद्धों में ।
श्लोक (२७,२८)
मैं अश्वों में उच्चैःश्रवा, ऐरावत हूँ गजराजों में,
सागर मन्थन से सुधोत्पन्न, मैं हूँ नरेश नरपालों में ।
शस्त्रों में मैं ही बज्र रहा, गायों में कामधेनु मैं हूँ,
कन्दर्प हेतु सन्तति का मैं, सर्पों में मैं ही बासुकि हूँ।
श्लोक (२९,३०)
सब नागों में हूँ शेषनाग, हूँ वरुण देवता जलचर में,
पितरों में पितर अर्यमा मैं, यमराज शासनाधीशों में ।
दैत्यों में मैं प्रहलाद पार्थ, हूँ काल दमन कर्ताओं में,
खग में मैं गरुड़ विष्णु वाहन, वनराज सिंह हूँ पशुओं में ।
श्लोक (३१)
मैं पवन पवित्र कारकों में, भगवान राम आयुध धर में
मैं सरिताओं में सुरसरि हूँ, मैं मगरमच्छ हूँ जलचर में
श्लोक (३२)
हे अर्जुन, मैं हूँ जगदीश्वर, सम्पूर्ण सृष्टि का मैं उदगम,
मैं मध्य रहा, मैं अन्त रहा, मैं जन्म रहा मैं रहा मरण ।
सब आगम निगम पुराण बीच, विद्याओं में अध्यात्म रहा,
मैं तर्क-वितर्क विवादों में, निर्णयकारी पद वाद रहा ।
आत्मा की विद्या को अर्जुन, अध्यात्म, मार्ग सुख का कहते,
विज्ञान आत्मा का है यह, निष्ठा से जुड़कर जन रहते ।
दर्शन इसका अज्ञान हरे, साधन धार्मिकता के जोड़े,
पाये परमात्मा को आत्मा, जीवन भौतिकता को छोड़े ।
श्लोक (३३)
वैदिक साहित्य सम्रग मध्य, अक्षर मैं हूँ ‘अकार’ अर्जुन,
मैं रहा समासों मध्य द्वन्द्व, दोनों पद जिसमें सम अर्जुन ।
यह जग सब काल कलेवा है, मैं ‘काल’ तत्व हूँ अविनाशी,
मुख सभी दिशाओं में जिसका, मैं ब्रह्मा आमुख प्रजापती ।
श्लोक (३४)
सर्वस्व नाश करने वाला, मैं हूँ कृतान्त, मैं मृत्यु पार्थ,
उत्त्पति हेतु मैं ही कारण, मुझसे जीवन क्रम का विकास ।
ऐश्वर्य सात गुण नारी के, जो जहाँ मुझे भासित करते,
मैं कीर्ति, वाक, श्री, स्मृति, मेधा, धृति, क्षमा, व्यक्त मुझको करते ।
श्लोक (३५)
मैं मन्त्रों में हूँ वृहत्साम, जो गान इन्द्र के लिए गेय,
छन्दों में मैं हूँ गायत्री, जिसको जपते ब्राह्मण सश्रेय ।
महिनों में मैं हूँ मार्ग शीर्ष, धनधान्य पूर्ण प्रभुदित जीवन,
ऋतुओं में मैं रहता बसन्त, सम शीत धाम मुकुलित उपवन ।
श्लोक (३६)
छल छद्म बीच मैं द्यूत कर्म, मैं तेज रहा तेजस्वियों का
मैं विजय विजेताओं की हूँ, उद्यम हूँ मैं उद्यमियों का
मैं साहस परम साहसिकों का, बलवानों का मैं ही बल हूँ
मैं हूँ प्रभाव, जय, साहस, बल, सबसे बढ़ चढ़कर मैं छल हूँ ! क्रमशः…