भाजपा के लिए मुसीबत बन गए है ” मामा “

पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बचाना मुश्किल हो रहा है। साढ़े अठारह साल से प्रदेश की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उर्फ मामा , ना केवल मोदी, बल्कि भाजपा और आरएसएस के लिए भी मुसीबत का सबब बन गये हैं। उनके कार्यकाल में हुए घोटालों को आरएसएस के लोग तो पचा ही नहीं पा रहे हैं, वो मोदी-शाह को भी नहीं भा रहे। इसीलिए शिवराज को चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया गया है….

लेकिन शिवराज सिंह को लेकर भाजपा की स्थिति सांप छछूंदर जैसी हो गयी है। जिसे ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते! अब हालत ये है कि शिवराज को साइड करने से‌ उनके समर्थकों में नाराजगी और निराशा है। वहीं पार्टी में उनके विरोधी भी नाराज़ हैं। उन्हें लगता है कि यदि बीजेपी चुनाव जीत जाती है, तो शिवराज को मुख्यमंत्री बनने से रोकना आसान नहीं होगा।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि शिवराज सिंह विपरीत हालात में भी स्थितयों को अपने अनुकूल बनाने की बाजीगरी के माहिर हैं। इसी के बूते पर वो कमलनाथ सरकार गिरने पर चौथी बार मुख्यमंत्री बने थे। और यदि बीजेपी इस बार भी चुनाव जीत जाती है, तो पार्टी नेतृत्व के लिए शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बनने से रोक पाना मुश्किल होगा। मोदी-शाह की पसंद ना होते हुए भी पिछली बार भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था।आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले पार्टी में कोई अन्य नेता चेहरा बनाने लायक नहीं है।

बीजेपी ने भले कई सांसदों और केंद्रीय मंत्री तक को टिकट थमाकर चुनाव मैदान में उतार दिया है। इसके पीछे सोच ये है कि अलग-अलग क्षेत्रों में ये दिखाना है कि अमुक बड़ा नेता, जिसे मोदी जी ने चुनाव लड़ने भेजा है, वो मुख्यमंत्री बन सकता है। उनमें एक नेता कैलाश विजयवर्गीय हैं। विजयवर्गीय खुद हैरान हैं कि उनके बेटे का टिकट काटकर उन्हें क्यों चुनाव में उतारा है! इसी तरह की मन: स्थिति अन्य सांसदों की है, जिन्हें विधायक का टिकट थमा दिया गया है। मोदी के प्रसंशक इसे भी उनका मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। जबकि राज्य में बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त एंटीइनकंबेंसी है। इससे पार पाने का मंत्र अभी तक ना तो बीजेपी के पास है ना ही आरएसएस के पास।

प्रदेश में संघ का काडर हताश, निराश और नाराज हैं। वे शिवराज सिंह चौहान को साथ लेकर चल नहीं सकते और पार्टी के पास दूसरा कोई नेता ऐसा नहीं है, जिसे चेहरा बनाकर वे आगे बढ़े। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगने पड़ रहे हैं। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि‌ अठारह साल के शासन के बाद भी पार्टी के पास राज्य सरकार की उपलब्धियों के तौर पर बताने को कुछ खास नहीं है।
ऐसा नहीं है कि इन अठारह सालों में प्रदेश में काम बिल्कुल नहीं हुए हैं। यदि वास्तव में देखा जाये तो राज्य में सड़कों की दशा काफी हद तक सुधरी है। इसकी तुलना यदि हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्य से की जाये, तो सड़कों के मामले में मध्यप्रदेश की स्थिति ज्यादा बेहतर है। बिजली और जल आपूर्ति की स्थिति भी काफी अच्छी रही है। शिक्षा और चिकित्सा व अन्य आधारभूत सुविधाओं के मामले में मध्यप्रदेश देश के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ है। शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में हुए घोटालों ने मोदी की भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की मुहिम को पलीता लगा दिया है।

यदि आज प्रदेश के बीजेपी नेताओं की संपत्तियों की आई टी, ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों से जांच करवा ली जाये तो भ्रष्टाचार का खुला खेल सामने आ जायेगा। राज्य में बीजेपी की सरकार है इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘त्रिशूल’ यानी आईटी, ईडी और सीबीआई को यहां छापेमारी करने की इजाजत नहीं है। राज्य सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों से दुखी संघ प्रचारकों ने अलग पार्टी का गठन करके बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। संघ प्रचारकों के पार्टी बनाने को शुरूआत में इस रूप में देखा गया था कि ये कदम बीजेपी से नाराज़ नेताओं को कांग्रेस व अन्य दलों में जाने से रोकने के लिए उठाया गया है। लेकिन अब ये बात साफ हो गयी है कि सरकार के प्रति संघ से जुड़े विभिन्न संगठनों में भारी नाराजगी है। इसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा।
संघ के अंतरंग सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक संघ नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी खुश नही हैं। संघ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह को भी हकीकत से रूबरू करवाना चाहता है, ताकि लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति और तैयारियों में उचित संशोधन किया जा सके। कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद विरोध के स्वर भी तेज हुए हैं। टिकट नहीं मिलने से नाराज़ नेता चुनाव मैदान में निर्दलीय उतरने की धमकी भी दे रहे है। लेकिन बगावत करके वे बीजेपी में शामिल नहीं हो रहे हैं। जबकि बीजेपी के बागी पार्टी छोड़कर सीधे कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। इस बात को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और संघ के कर्ताधर्ता बाखूबी जान और समझ रहे हैं। लेकिन उसके पास फिलहाल इन स्थितियों और हालात पर काबू पाने का कोई कारगर उपाय नहीं है। कांग्रेस के बागियों से अरविंद केजरीवाल की आम‌ आदमी पार्टी को कुछ मजबूत उम्मीदवार मिल रहे हैं …. धर्मपाल धनखड़