‘गीता ज्ञान प्रभा’ धारावाहिक .. 9

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलियाजी द्वारा रचित ‘गीता ज्ञान प्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।

उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा धारावाहिक की 9 वी कड़ी ..

अध्याय- एक

                 -:  अर्जुन विषाद योग :-

 

श्लोक (३२,३३,३४)

निकलेगा परिणाम भला ही युद्ध अगर टाला जाये,

हत्याओं में नहीं भलाई मुझे दूर तक दिख पाये ।

नहीं चाहिए मुझको ऐसी विजय कृष्ण मैं सच कहता,

और न ऐसा राज्य चाहिए जहाँ न सच्चा सुख रहता ।

 

घेरेगा सन्ताप, घोर हत्याएँ करके स्वजनों की,

तुच्छ राज्य सुख भोग,दशा में बतलाऊँ कैसे मन की ?

ऐसे सुख-भोगों में जीवन-लाभ कौन सा निहित रहा ?

जिसको पाने में अपने आत्मीय जनों का रक्त बहा ।

 

दोनों लोक बिगाहूँगा ही, अपनों की हत्याएँ कर,

पाऊँगा सन्ताप जलूँगा, उससे अपने जीवन भर ।

दुखद अवस्था कैसी भी हो सह लूँगा उसको भगवन ,

नहीं लडूंगा नहीं लडूंगा, पूज्य रहे मेरे गुरुजन ।

 

उनके किसी अमंगल को, चिन्तन करना है पाप मुझे,

उनके हित प्राणार्पण करना, होगा नित स्वीकार मुझे ।

जीते किनके लिए, अर्थ जीवन का क्या हे कृष्ण रहा,

पुत्रों से ही तो कुल चलता, कुल चलता तो वंश चला।

 

क्या यह उचित कि पुत्र करे संहार गोत्र वालों का ही ?

बज्र समान कठोर भावना से फटता है मेरा जी ।

अपने हाथों से हो सबका भला, कामना है मेरी,

कर पायें उपभोग जन्म भर ऐसी हो रचना मेरी ।

 

उनके लिए न्यौछावर करना पड़े प्राण तो करूँ स्वयं,

ऐसा जीवन जियूँ कि पाए सुख-सन्तोष सभी का मन |

किन्तु कर्मगति रही विलक्षण वे उद्यत हैं लड़ने को,

चाह रहा मैं जिनका जीवन सुखी समुन्नत करने को ।

 

तज आए हैं दारा सुत धन, निकले सिर पर बाँध कफन,

नहीं समझ में आता केशव, विकल बहुत है मेरा मन ।

रख छोड़े हैं प्राण इन्होंने असि की पैनी धार पर,

कैसे इन पर शस्त्र उठाऊँ? नहीं न होगा यह केशव ।

 

ज्ञात आपको भी तो है ये रहे पितामह भीष्म यहाँ,

यहां रहे आचार्य द्रोण जग में हैं ऐसे पुरुष कहाँ ?

इनके जो उपकार करेगा भला कौन उनकी गिनती,

साख बनी जो पाण्डव कुल की इनके बिन क्या बन सकती ? (३५) क्रमशः ….