षोडशोऽध्यायः – ‘देवासुर सम्पत्ति विभाग योग’
अध्याय सोलह – ‘दैवीय और आसूरी मन का स्वभाव’
परमेश्वर से सम्बन्ध रखने वाले तथा उनको प्राप्त करा देने वाले सद्रुणों और सदाचारों का; उन्हें जानकर धारण करने के लिए दैवी सम्पदा का वर्णन असुरों के दुर्गुण और दुराचारों का वर्णन । उन्हें जानकर त्याग करने के लिए आसुरी सम्पदा के नाम से वर्णन ।
श्लोक (१५)
मेरा कुटुम्ब है बहुत बड़ा, धन धान्य अतुल ऐश्वर्य रहा,
मेरे जैसा न सुखी कोई, कोई न तुल्य बलवान रहा ।
मैं यज्ञ करूँगा बहुत बड़ा, मुझसे याचक धन पायेंगे,
आनंद मनाऊंगा इतना, सब देख चकित रह जायेंगे ।
अज्ञान भरा कहता फिरता, मैं यह रचाऊँगा विशाल,
सबको दूगा भरपूर दान, जग में होगी मेरी मिशाल ।
आनंद अपार मनाऊंगा, अचरज में डालूँगा सबको,
मैं हूँ कुलीन मैं हूँ धनाढ्य करना हैं बहुत कार्य मुझको ।
जारण-मारण सम्मोहन के, मन्त्रों का मान बढ़ाऊँगा,
गुणगान करेंगे जो मेरा, उनको सम्मान दिलाऊँगा ।
दुख सब बिसरा दूगा अपने, मादक द्रव्यों का कर सेवन,
कितना आनंद न आयेगा, नित नये नये कर आलिंगन ।
सहयोगी मित्र बांधवों का, मेरे कुटुम्ब का पार नहीं,
अनुयायी सहयोगी कितने, इनका भी रहा हिसाब नहीं ।
धनबल, जनबल मेरे जैसा, क्या अन्य किसी के पास रहा ?
मेरा विरोध कर सके भला, ऐसा किसमें सामर्थ्य रहा ?
मेरे जैसा करवा सकता है,कौन दूसरा कार्यश्रेष्ठ?
मेरे जैसा बटवा सकता है,कौन दूसरा धन यथेष्ट?
हो सकता कहीं दूसरा क्या, मेरे जैसा रे धर्मात्मा?
ऐसा दानी क्या हो सकता, प्रसन्न जिससे हर जीवात्मा ।
मैं दान करूँ मैं यज्ञ करूँ, मैं रहूँ चहेता जनता का,
मेरे भुजबल की, धनबल की, क्या कहीं दीखती है समता?
जन-जन का मुझसा हितकारी, शुभचिंतक कहाँ दूसरा है?
जनता का श्रद्धा मुकुट मात्र, मेरे ही सिर पर फबता है
मेरे अनुयायी हैं अनेक, किसका न समर्थन प्राप्त हुआ?
किसकी न नींद कर दी हराम, जिसने भी जरा विरोध किया
कर देंगे पूरे आश्वासन, हर पेड़ समय पर फलता है,
कल की आशा में आज मनुज, तपती बालू पर चलता है।
उनकी सारी बातें झूठी, मिथ्या उनके सब आश्वासन,
मिथ्या उनका भाईचारा, मिथ्या उनके सब धरम करम ।
केवल डींगे हाँका करते, उपक्रम सब रौब जमाने के,
हाथी के दाँत अलग होते, खाने के और दिखाने के ।
रहता है चित्त भ्रमित उसका, फँस रहता विषय वेलियों में,
टिकता न कहीं, रहता चंचल, कामोपभोग की गलियों में ।
विषयोपभोग ही एकमात्र, उसके जीवन का लक्ष्य रहे,
उसको अपने पापों का फल, दुखदायी कुम्भीपाक मिले । क्रमशः….