मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों के बाद भी जिला प्रशासन बंद नही कर पा रहा है..

दूषित परम्परा को बदलने और उसके प्रति बदलाव के कारणों को समझाने में जनप्रतिनिधियों की महती भूमिका होती है ! परन्तु परम्परा जो लोगों की जान पर बन आये, जिसे मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों के बाद भी जिला प्रशासन बंद नही कर पा रहा है  ! इसको साफ़ शब्दों में कहा जाय तो यह जिले के वरिष्ठ अधिकारियों का निकम्मापन है ! जो वक्त रहते  जागरूक नही कर पाए ,ना तो जनता और नही जनप्रतिनिधियों को ! क्या ऐसे में वरिष्ठ नौकरशाहों को जिले में रहने का कोई हक़ है ? जिनके रहते गोटमार मेला एक दिन पहले ही शुरू हो गया और दुसरे दिन तीन सौ से अधिक लोग घायल हो गये , तीन लोगो की हालत नाजुक बताई जा रही है ….

छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना में आयोजित गोटमार मेले में पहली बार जनप्रतिनिधि भी पत्थर फेंकते नजर आए। दरअसल पोला के पर्व के दूसरे दिन आयोजित होने वाले पारंपरिक गोटमार मेले में पांढुर्ना विधायक नीलेश उइके भी लोगों के साथ मिलकर पत्थर बरसाते नजर आए।

गोटमार मेले में क्षेत्रीय विधायक नीलेश उइके अपने सुरक्षा गार्ड के साथ पहुंचे एवं क्षेत्र के निवासियों के साथ परंपरा का निर्वहन करते हुए पांच पत्थर मारकर विश्व विख्यात परंपरा के इस मेले का हिस्सा बने। हर बार की तरह इस बार भी लोगों ने उत्साह के साथ गोटमार मेले में भाग लिया। पत्थर बाजी के दौरान 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं।

परंपरा के नाम पर बीते कई वर्षों से पांढुर्ना और साबर गांव के बीच ये खूनी खेल जारी है। जिला प्रशासन कई बार इस खेल का स्वरूप बदलने के लिए जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लेकर  लगातार बैठकें आयोजित करता आ रहा है। लेकिन हाल ही में मेले में खुद जनप्रतिनिधि परंपरा के नाम पर जारी खूनी खेल का हिस्सा बनते दिखे। जिसे देखकर अब माना जा रहा है कि जब जनप्रतिनिधि खुद खेल में भाग ले रहे हैं तो  इसके स्वरूप को बदलना मुश्किल है।

विधायक निलेश उइके ने गोटमार मेले में पांढुर्णा पक्ष की ओर से पत्थरबाजी की। उन्होंने इस दौरान बताया कि वह क्षेत्रवासियों के साथ खड़े हैं एवं दशकों पूर्व की सभी परंपराओं में वह जनता जो चाहती है वही होना चाहिए इसका निर्वाहन करा रहे हैं । इससे पहले भाजपा विधायक स्वर्गीय रामराव कवडेटी भी गोटमार मेले को बंद करने को लेकर आयोजित की गई बैठक में विरोध किया था और कलेक्टर को यह कह दिया था कि यदि गोटमार मेला बंद किया जाएगा तो सबसे पहले पत्थर वही मारेंगे। 

गोटमार मेले की शुरुआत कब हुई इसके को लेकर सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन इस खूनी खेल में अब तक ग्रामीणों के अनुसार गांव के 19 लोग जान गवां चुके हैं। वहीं, जिन जनप्रतिनिधियों को ऐसे जानलेवा खेल को बंद कराना चाहिए यदि वे ही इस खेल में शामिल होकर इसे परंपरा के निर्वाह का नाम देंगे तो गोटमार मेले का स्वरूप शायद कभी बदला नहीं जा सकेगा। और जब तक वतिष्ठ अधिकारियों को जन प्रतिनिधियों  और जनता को साथ लेकर सभी के समग्र प्रयासों से ही यह सम्भव है ! वरना किसी एक के बूते की बात नही ?