कुर्सी किसी की स्थाई पूँजी नही रही….?

 सांसद, विधायक और पार्षद ….

अगर घर घर जाकर वोट मांग सकते है तो,, घर घर जाकर दूध, राशन क्यू नहीं पहूँचा सकते??? हमने भी तो 2-2 घण्टे लाईन मे लगकर उन्हे जिताया है… हमने अपने नागरिक धर्म का पालन किया वो अपने राज धर्म का पालन करे…

चुनाव से पहले हर राजनीतिक दल के प्रत्याशी 50-100 कार्यकर्ताओं की भीड़ व गाड़ियां लेकर भोजन के पैकेट, शराब, रोकड़ा भरकर वोट मांगने के बदले बांटने निकलते थे।
कहां हैं ? वह सारे।
अब जब उनकी जरूरत है लोग भूखे हैं। 
अब जब घोर विपत्ति आई है।
यह सत्कार्य कार्य करें तो लगे जनता को यह हमारे सच्चे हितैषी हैं। बढ़िया अवसर दिया है। उनके आका ने वोट बैंक मजबूत करने बरसों तक जनता के दिलों दिमाग पर छाए रहने के लिए।
तो अब बाहर निकले भीड़ नहीं गाड़ियां भरकर कम से कम भोजन के लिए दाल चावल गेहूं सब्जी ही बांट दें।
यह हर नेता सांसद विधायक पार्षद गांव के पंच सरपंच कुछ सेवा भाव ही करके दिखा दे।
जो कमाया है।
सीने पर रखकर नहीं ले जाएंगे ? अगर मर गए तो भी कम से कम भूखे प्यासे लोगों का पेट ही भर दे।
इस बहाने हर नेता को अब अपनी काबिलियत जनसेवक होने की भावना को सिद्ध करने का अवसर है।

अब भुनाले,किसने रोका है ?
चाहे कांग्रेसी हों या भाजपाई..? कमलनाथ हो या शिवराज भाई ..?

कमलनाथ क्या हो गया अगर मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई और शिवराज सिंह चौहान स्वर्ग के अधिपति नही हो गए ? कुर्सी किसी की स्थाई पूँजी नही रही है इस पर दंभ करना निरी बेवकूफी है ? तुम सभी तो मानव सेवा का दंभ भरते थे ? सेवा भावना का ढोल पीटते थे ?

तो अब ढोल मत पीटो। जनता के बीच पहुँचो ,भूखी-प्यासी जनता की 15 अप्रैल तक पेट भरके सेवा करके दिखाओ , जो आगे आयेगा वही कुर्सियां पायेगा….   मानव सेवा ही सच्ची सेवा है