3 दिन ब्राह्मण अपने आपको घरों में कैद कर लेते है ..

भारत बर्ष में दीपावली को हिन्दू मान्यतानुसार साल का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है ! इन पञ्च दिनों में पूरा देश हर्ष उल्ल्हास और धार्मिकता में खोया रहता है ! चारो तरफ खुशियों के तराने गुंजायमान और रौशनी से देश जगमगाया रहता है ! क्या छोटा क्या बड़ा सभी के घरो में रौशनी चेहरे पर मुस्कान साफ़ झलकती है ! वहीं इस पर्व से जुड़ी कई परंपराएं , मान्यताएं और किवदंतियांए समाज में आज भी प्रचलित है । ऐसी ही अनोखी परंपरा प्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव की है। यहां दीपावली पर्व पर गुर्जर समाज के लोग तीन दिनों तक ब्राह्मणों का मुहं नहीं देखते .. रतलाम से श्याम भरावा 

प्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव में इस परंपरा वर्षों से चल रही है। यहां बड़ी संख्या में निवासरत गुर्जर समाज के लोग आज भी इस परंपरा को जारी रखे हुए है । परंपरानुसार दीवाली के दिन गुर्जर समाज के लोग कनेरी नदी के पास एकत्र कतारवद्ध होकर पितृ पूजन कर बेर की टहनी सहित पूजन सामग्री पानी में बहाते हैं !

पूजा के बाद समाज के सभी लोग मिलकर घर से लाया हुआ भोजन करते हैं और पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा का पालन करते हैं। दीपोत्सव के पांच दिन में से तीन दिन रूप चौदस, दीवाली और पड़वी के दिन गुर्जर समाज के लोग ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते।

फोटो : सोसल मिडिया

कनेरी गांव में जारी यह परंपरा काफी वक्त से जारी है, हालांकि अब इसे निभाने वाले लोगों की संख्या में कमी आ गई है। लेकिन अब भी गांव में कुछ बुजुर्ग लोग इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। जब दीवाली पर गुर्जर समाज के लोग नदी पर पूजा करने जाते हैं तो गांव में सन्नाटा छा जाता है।

गुर्जर समाज के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने यह परंपरा शुरू की थी ! वर्षों पहले समाज के आराध्य भगवान देवनारायण की माता ने ब्राह्मणों को श्राप दिया था। जिसके मुताबिक दिवाली के 3 दिन रूप चौदस, दीपावली और पड़वी तक कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समाज के सामने नहीं आ सकता है। वहीं गुर्जर समाज के भी लोग इन तीन दिनों में किसी भी ब्राह्मण का चेहरा नहीं देख सकते हैं। उसी समय से लेकर आज तक गुर्जर समाज दिवाली पर विशेष पूजा करता है।। इस परंपरानुसार गाँव में रहने वाले सभी ब्राह्मण अपने-आपको घरों में बंद कर लेते हैं।