10वीं की परीक्षा नहीं दे पाईं भाजपा विधायक ..

इसे देश की विडंबना ही कहा जाएगा की हमारे लोकतंत्र में जनता के लिए नीतिया बनाने बाले जनप्रतिनिधि कितने विद्वान है ? लोकतंत्र  का मंदिर कहे जाने बाले लोकसभा और विधानसभा में पहुँचने बाले हमारे माननीय आधे से अधिक अपराधी और कम पड़े-लिखे है ! ये ही लोकहित के लिए नीतियाँ और क़ानून बनाते है और राजनैतिक दलों के आका ऐसे ही लोगों को टिकिट वितरण करने का काम कर रहें है  ! इन ज्ञान के सागरों में ही लोकतंत्र बीते 70 सालों से डुबकियाँ लगा रहा है !

बीते कुछ समय से इनकी भरमार सदन में ज्यादा दिखाई पड़ रही है ..सोचिये और फिर फैसला कीजिये कि हम किस तरह का लोकतंत्र आने बाली पीढ़ियों को सौंपने जा रहे है ? फैसला हमें ही करना होगा ….राकेश प्रजापति 

जीवन में शिक्षा का अपना महत्त्व है , स्किक्षा और ज्ञान के बिना मनुष्य पशु के समान माना जाता है , ज्ञान से ही व्यक्ति समाज को नई दिशा  देने का काम करता है ! इसी से ही अभिभूत हो नेपानगर विधानसभा सीट से भाजपा विधायक सुमित्रा कास्डेकर ने मप्र की बोर्ड परीक्षा में बैठने के लिए पर्चा भरा था. लेकिन इस बार भी वो परीक्षा नहीं दे पाएंगी !

विधायक ने कहा कि बजट सत्र शुरू होने की वजह से वो परीक्षा में नहीं शामिल हो पाएंगी. ऐसे में दो दशकों से परीक्षा देने की तमन्ना विधायक की अधूरी रह जाएगी. करीब 21 साल पहले विधायक ने पढ़ाई छोड़ दी थी.

इस बार की एमपी बोर्ड की 10 वीं की परीक्षा 1 मार्च से शुरू हुो गई है. विधायक सुमित्रा कास्डेकर ने देडतलाई के शासकीय मॅाडल हायर सेकेंड्री स्कूल से फार्म भरा था. वो भी अन्य छात्रों की तरह परीक्षा में शामिल होने के विचार में थी. लेकिन बजट सत्र में रहने की वजह से विधायक ने अपनी परीक्षा छोड़ दी और कहा कि बजट में रहना जरूरी है. इसके अलावा कहा कि अगली बार जब बोर्ड की परीक्षा होगी तो परीक्षा देने को देखा जाएगा.

सुमित्रा कास्डेकर का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के सेमाडोह में हुआ था. 15 अगस्त 1983 को जन्मी सुमित्रा कास्डेकर के स्कूली कागजातों में उनका नाम बाली सेमलकर है. लेकिन घर का नाम सुमित्रा है. इन्होंने केवल 8 वीं तक ही पढ़ाई की है. इनके मुताबिक उस समय गांव में स्कूल न होने की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई.साल 1999 में इनकी शादी देड़तलाई के वेटनरी डॅाक्टर राजेश कास्डेकर के साथ हो गई. शादी के बाद इन्होंने पढ़ाने की कई बार इच्छा जाहिर की लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से अपना ये सपना नहीं पूरा कर पाई. जिसके चलते उन्होंने इस बार 10 वीं की परीक्षा देने के लिए फॅार्म भरा थे लेकिन इस बार भी इनका सपना अधूरा रह गया.

सुमित्रा कास्डेकर का राजनीतिक सफर देखे तो इन्होंने साल 2009 में पंचायत सरपंच के रूप में अपनी राजनीतिक शुरूआत की थी. लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2018 में उन्होंने फिर से जनपद चुनाव लड़ा और विजेता हुई. फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर नेपानगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 2020 में भाजपा में शामिल हो गई और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विजेता बनी. मिडिया रिपोर्ट