गीता दर्शन प्रदूषित चित्त के परिमार्जन की औषधि है : प्रो. सिंह

विश्वगीता प्रतिष्ठानम की छिंदवाड़ा इकाई द्वारा साप्ताहिक गीता स्वाध्याय के तहत समर्थ रेजीडेंसी में आयोजित कार्यक्रम में “गीता जीवन प्रबंधन की दिव्य कृति” विषय पर व्याख्यान में बोलते हुए प्रेरक वक्ता प्रो. अमर सिंह ने कहा कि गीता के स्वाध्याय से कृष्ण निवास का पता मिल जाता है। गीता प्रदूषित चित्त परिमार्जन आख्यान है, तात्विक चेतना अभिव्यक्ति है और उदासी, अवसाद, त्रास से निजात दिलाती है। जीवन प्रबंधन की सर्वोत्कृष्ट कृति गीता भय, संदेह और भ्रम के असुरों की विनाशक है। गीता स्वयं में शाश्वत विराट आध्यात्म की विषद विवेचना है, इसका विशद पुरातन ज्ञान कर्मयज्ञ से आत्मसिद्धि की सामर्थ्य प्रदाता है और भावातीत विचार भवबाधा से मुक्ति प्रदान करते हैं….

गीता दर्शन के अनवरत अभ्यास से समाधिस्थ होने की परिणति मिलती है, दिव्यता का प्रस्फुटन होता है और जीवन प्रबंधन की युग निर्धारक मार्गदर्शी रचना है।

गीता की अमृतवाणी अपने पाठकों को सदियों से परमानुभूति का रसास्वादन करवाती रही है। गीता स्वयं से परे उड़ने का मुक्ति मार्ग है, निजी खूबियों को पहिचानने की युक्ति है और पढ़ने की सर्वोच्च वजहों की वजह है।

छिंदवाड़ा इकाई प्रमुख नेमी चंद व्योम ने अपने उद्बोधन में कहा कि गीता मानव के रहस्यमई प्रश्नों के निवारण की औषधि है और मानव अस्तित्व को परिभाषित करने वाली अंतिम आराध्य पुस्तक है।

देवत्व प्राप्ति हेतु अज्ञानता निवारण युक्ति है, राग अनुराग से वीतराग की यात्रा है और भौतिक मानव देह का परमात्मा में स्थानन की सूक्ति कोष है। गीता संप्रेषण कौशल का खजाना है, व्यक्तित्व निखार सार है और सर्वकालिक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति चेतना है।

प्रवक्ता सुनील विश्वकर्मा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गीता वैचारिक शुचिता, कर्मनिष्ठा और सामर्थ्य प्राप्ति की सीढ़ी है। इसमें निहित भक्ति, कर्म और ज्ञान दर्शन आत्मसिद्धि प्राप्ति की कुंजी हैं, दुर्लभ कथ्य ज्ञान है और जनमानस हेतु संतुलित जीवन प्रबंधन जीने की सर्वकालिक, सर्वमान्य और सार्वभौमिक पुस्तक आत्मप्रबोधिनी अमूल्य धरोहर है। कार्यक्रम में छिंदवाड़ा शहर के समस्त गीता प्रेमी उपस्थित रहे।