जहाँ नीच शब्द भी वजनदार लगने लगे..?

लोकतांत्रिक मूल्यों और विचारधारा की राजनीति इतनी रसातल में पहुंच गई है कि शायद ही किसी ने कल्पना की होगी ?
पहले गोवा ,मणिपुर, कर्नाटक और अब मध्यप्रदेश में सत्ता हड़पने के लिए खेले जाने बाले खेल पूरे देश के लिए आश्चर्य का विषय बने हुए है । राजनेताओ की करतूत को जनता बेवस हो देख रही है । वही जनता जिसे लोकतंत्र में मालिक का दर्जा है  ? परंतु राजनेताओ ओर राजनीतिक दलों की निकृष्ठ कुटिल चालो ओर मक्कारी भरे सरासर झूठ से जनता के मन को तार-तार कर दिया है । वर्तमान के राजनेताओ ओर राजनैतिक दलों में जनमत का कोई सम्मान शेष नही है ? सत्ता लोलुपता के उद्देश्य से जनमत का किस तरह चीरहरण ये राजनीतिक दल कर रहे है और उसी मुहँ  से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की दुहाई ,संविधान ,सुचिता जैसे निष्कलंक शब्दो से ढींगे मारने में भी किसी से पीछे नही है …..राकेश प्रजापति 
इन सब कृत्यों से जनप्रतिनिधियों के उद्देश्य तो पूरे हो जाते है राजनीति की कुटिल चाले ओर झूठ फरेब से बेचारी जनता ही ठगी जाती है , जनमानस के जनमत अपनाम ओर सामुहिक लूट आखिर कब तक यूँ चलती रहेगी । यह सबाल जानता जानना चाहती है ? क्या इस अनुत्तरित प्रश्नों के जबाब कभी मिल पाएंगे ?
        एक व्यक्ति की राजनैतिक अति महत्वकांक्षाओ के चलते राज्य में यह राजनैतिक संकट खड़ा होने के साथ – साथ संवैधानिक संस्थाओं पर बैठे लोगों की अपनी पार्टी के प्रति वफादारी के लिए दिए गए तर्कों ने महामारी की भूमिका का  विश्व मे पहला उदाहरण होगा ? बहरहाल , कोरोना वायरस से फैली महामारी ने दुनिया भर में मध्यप्रदेश की कमलनाथ कांग्रेस सरकार को बचा लिया ?
देश मे आजादी की कोख से जन्मे इस लोकतांत्रिक देश के संविधान निर्माताओं ने शायद ही सोचा होगा कि 70 बर्षो बाद भारत मे राजनेताओ और राजनीतिक दलों की नैतिक जिम्मेदारी नीचता की पराकाष्ठा को भी पर कर जाएगी ? जहाँ नीच शब्द भी वजनदार लगने लगेगा ?
जहाँ जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों को स्वर्ण आभूषण की तरह छुपा कर रखा जाएगा , इस डर से कि कहीं लुटेरे लूट ना ले जाय ?
क्या इस लोकतंत्र की परिकल्पना हमारे संविधान निर्माताओ ने की होगी ?
वहीँ क्षेत्र बिशेष से जनता द्वारा चुना प्रतिनिधि पदार्थ की भांति (आज के लोकतंत्र में ) अपने आप को बाजार की बस्तु समझने लगे उसकी नैतिकता निर्लज्जता में कब तबदील हो गई यह भी खोज की विषयवस्तु है ? बिना यह सोचे समझे कि क्षेत्र के लाखों लोगों ने उसे इस लिए चुना की वह उनके सुख दुख , सामाजिक, आर्थिक उन्नति का कारक बन सके ? परन्तु आज के लोकतंत्र में बिकाऊ तो हर चीज है सब अपने फायदे के लिए दुरभिसंधियों के माध्यंम से अपना अलग संसार बुन रहे रहे है ?
ठगी जा रही है तो सिर्फ जनता …. ?