‘गीता ज्ञान प्रभा’ धारावाहिक .. 5

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलियाजी द्वारा रचित ‘गीता ज्ञान प्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।

उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक की पांचवी कड़ी ..

अध्याय- एक

                 -:  अर्जुन विषाद योग :-

श्लोक (१४,१५,१६)

जो रथ रण की विजय हेतु मानो था घर-संसार बना,

जिस पर अमित तेज का मानो अक्षय अतुल वितान तना ।

अश्व चार अति दिव्य जुते थे गति में गरुड़ समान रहे,

शोभा मेरु मंचराचल की जिसके कलशों पर उभरे

 

दशों दिशाएँ दीप्त तेज से हुई तेज ऐसा छाया,

साथ कृष्ण के अर्जुन का रथ जब युद्धस्थल में आया ।

स्वयं बने श्री कृष्ण सारथी रथ पर पहिले दीख पड़े,

उस रथ के गुण रहे निराले उनका वर्णन कौन करे?

 

साक्षात शिव के अवतार रहे बजरंग ध्वजाधारी,

बने सारथी हाँक रहे थे जिसको गोवर्धन धारी

अपने भक्तों के प्रति प्रेम असीम रहा प्रभु का देखें,

भक्तों की कैसे रक्षा करते हैं प्रभु इसको लेखें ।

 

सेवक को पीछे कर, आगे स्वयं झेलने वार खड़े,

या बाधा को दूर ठेलने सबसे आगे स्वयं बढ़े ।

सहज भाव से पाञ्चजन्य को केशव ने फूँका पहिले,

बहुत बड़ी ध्वनि हुई, हुए सब तेज हीन, मन में दहले ।

 

कोलाहल रण वाद्यों का जो कुरु दल ने उपजाया था,

मानो हुआ विलीन, नया स्वर उसके ऊपर छाया था ।

तेजहीन हो जाते ज्यों नक्षत्र सूर्य के उगने पर,

सारे स्वर हो गये लुप्त स्वर पांचजन्य का उठने पर ।

 

भरे हुए आवेग पार्थ ने देवदत्त अपना फूँका,

दोनों की ध्वनि के मिलने से लगा कि जैसे नभ टूटा ।

महाशंख जो पौण्ड्र, भीम ने भी अब फूँक दिया उसको,

मेघ गर्जना हुई भयंकर मानो निगलेगी जग को ।

 

धर्मराज ने अपना शंख बजाकर नव उत्साह जगाया,

युद्ध हेतु तैयार अनन्त विजयम ने यह सन्देश गुंजाया ।

नकुल और सहदेव उन्होंने अपने-अपने शंख बजाये,

स्वर सुघोष के मणि पुष्पक के ऐसे गूँजे, यम थर्राये । क्रमशः….