पञ्चदशोऽध्यायः – “पुरुषोत्तम योग’ अध्याय पंद्रह – ‘जीवन का वृक्ष’
क्षर पुरुष (क्षेत्र), अक्षर पुरुष (क्षेत्रज्ञ), और पुरुषोत्तम (परमेश्वर)- तीनों का वर्णन, क्षर और अक्षर से भगवान किस प्रकार उत्तम हैं, किसलिए पुरुषोत्तम कहलाते हैं। आदि- पुरुषोत्तम योग,
श्लोक (३,४)
इस तरु का असली रुप पार्थ, जग में प्रत्यक्ष नहीं दिखता,
क्या आदि रहा, क्या अन्त रहा, आधार न इसका कुछ मिलता।
अति दृढ़ जड़ का यह वृक्ष कठिन, दृढ़ निश्चय से काटा जाये,
वैराग्य रुप कुठार अस्त्र, हाथों में जब मानव पाये ।
तीनों लोकों के जीवन में, हो रहा अविद्या का प्रसार,
बढ़ रही अहमता, ममता भी, अरु रहा वासना का उभार ।
दृढ़ मूलों वाले इस तरु का, प्रारम्भ कहाँ है, अन्त कहाँ,
कुछ भी न पता मिलता इसका, मन के विचार पहुँचे न वहाँ।
ये पाश वासना के दुरुह, जब तक न जड़ें काटी जायें,
घटने की बात असम्भव है, ये दिन दूने बढ़ते जायें ।
है कार्य कठिन जड़ का कटना, वह पुष्ट बहुत, बलवान रही,
वह अन्तहीन बाहर-भीतर, तरु के संग चहूँदिशि फैल रही।
अच्छेद जड़ों का दुष्कर है, इसलिए धार वैराग्य भाव,
धारे असंग का शस्त्र मनुज, समझे जग का नश्वर स्वभाव ।
यह शस्त्र सबल हाँथो में ले, कर चले मूल का उच्छेदन,
जग के तरु का वैराग्य भावना ही कर सकती है भेदन ।
पक्की जड़ वाले पीपल को, तलवार विरक्ति की काट सके,
सपने की दुनिया कहाँ रहे, जब कोई अपनी नींद तजे ।
अज्ञान वृक्ष का मूल रहा, अज्ञान हटे तो वृक्ष कटे,
क्या अन्धकार रह पाता है, जब मन-मंदिर में दीप जले ।
संसार वृक्ष यह मिथ्या है, मिथ्या हैं, इसकी सब बातें,
जब तक बहती रहती समीर, लहरें उठतीं करतीं घातें ।
हो जाता है जल-तल प्रशांत, जब वायु शान्त हो जाती है,
क्या बन्ध्या के बच्चे होते, क्या छाँह पकड़ में आती हैं? ।
संसारी को यह जगतवृक्ष, “है” जैसा होता है प्रतीत,
ज्यों विविध रंग धारी सुरधुन, या नीलापन आकाश बीच ।
हो गया शक्तिशाली यह तरु, हम आत्मरुप को भूल रहे,
जिसका कोई अस्तित्व नहीं, उसको पकड़े, अज्ञान पगे ।
जग के तरु की शाखाओं पर, कब तक होगा यों व्यर्थ भ्रमण?
इसको न काटने पाओगे, निष्फल जायेगा सारा श्रम ।
बन्धन कारक सारे उपाय, बढ़ती ही जायेगी उलझन,
होता जाता है अधिक जटिल, आसक्ति भरा जग का जीवन ।
अज्ञान भाव को करो दूर, जागृत कर लो अपना स्वरुप,
यह सर्प नहीं है, रस्सी है, पहिचानो, इसमें हो न चूक ।
कितना भी पीटो सर्प समझ, उसको न मारने पा पाओगे,
वह सर्प नहीं मर सकता है, जब तक न ‘सत्य’लख पाओगे। क्रमशः…