राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सीधे Fir कर सकती है सीबीआई….

देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट  आज एक एतिहासिक फैसला सुनाया जिसमे उन्होंने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें सरकारी अधिकारी से राजनेता बने राज्य के शिक्षामंत्री ऑडिमुलपु सुरेश और उनकी आईआरएस पत्नी टीएन विजयलक्ष्मी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में 2017 की प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था। सीबीआई ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि प्राथमिकी से पहले प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य है। सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले की वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया है….

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सीबीआई प्रारंभिक जांच नहीं करने का विकल्प चुनती है, तो आरोपी ये नहीं कह सकता कि प्राथमिकी से पहले प्रारंभिक जांच उसका अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को कहा कि सीबीआई के लिए लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के हर मामले में प्रारंभिक जांच (पीई) जरूरी नहीं है। विश्वसनीय जानकारी या सुबूत होने पर सीबीआई ऐसे मामलों में सीधे प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कर सकती है। अभियुक्त पीई को अधिकार नहीं मान सकते।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि किसी संज्ञेय अपराध के घटने की विश्वसनीय जानकारी मिलने पर सीबीआई प्रारंभिक जांच करने के बजाय सीधे प्राथमिकी दर्ज कर सकती है। पीठ ने अपने फैसले में कहा, इस अदालत के फैसले और सीबीआई मैनुअल के प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप वाले सभी मामलों में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।

ललिता कुमारी मामले में संविधान पीठ के फैसले में यह माना गया था कि यदि यह जानकारी मिलती है कि कोई संज्ञेय अपराध हुआ है, तो उसके लिए प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी मामलों में प्रारंभिक जांच के लिए निर्देश जारी करना विधायी क्षेत्र में कदम रखने के समान होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सीबीआई प्रारंभिक जांच नहीं करने का विकल्प चुनती है, तो आरोपी ये नहीं कह सकता कि प्राथमिकी से पहले प्रारंभिक जांच उसका अधिकार है।

पीठ ने माना, आरोप गलत निकले तो लोकसेवक के लिए परिणाम घातक होंगे ,पीठ ने यह जरूर कहा कि अगर आरोप अंतत: गलत साबित हुए तो प्राथमिकी दर्ज होना किसी लोकसेवक के लिए विनाशकारी परिणाम ला सकता है। अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच में, सीबीआई को दस्तावेजी रिकॉर्ड तक पहुंच की अनुमति दी जाती है और लोगों से उसी तरह बात की जाती है जैसे वे एक जांच में करते हैं। पीई के दौरान एकत्र जानकारी का इस्तेमाल जांच के स्तर पर भी किया जा सकता है।                                                                               साभार मिडिया रिपोर्ट