देश की बेटियां असुरक्षित हैं….

देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारे है! ये सभी राज्य सरकार कितने ही बड़े बड़े बादे करे महिला सुरक्षा के परन्तु सच्चाई जग जाहिर है ?  इनके खोखले बादो और झूठे आंकड़ो की सच्चाई देर सबेर सबके सामने आ ही जाती है , बाबजूद इसके इन्हे जरा भी शर्म महसूस होती नजर नहीं आती है ! बड़ी बेशर्मी के साथ ये इन आंकड़ों के झूठा साबित करने की पूरी कोशिस करते है परन्तु सच्चाई को आप कब तक छुपा सकते है बह सबके सामने आ ही जाती है ….

21वीं सदी में भी देश की बेटियां असुरक्षित हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। बीते वर्ष ‘यौन उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण अधिनियम’ (पॉक्सो) के तहत दर्ज किए गए 99 फीसदी मामलों में बच्चियां दरिंदों का शिकार बनी थीं।

क्राई नाम की एक गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) ने एनसीआरबी के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें पता चला कि बीते वर्ष देशभर में पॉक्सो के तहत करीब 28,327 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 28,058 मामलों में पीड़ित लड़कियां थीं।चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) नाम की एक गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) ने एनसीआरबी के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें पता चला कि बीते वर्ष देशभर में पॉक्सो के तहत करीब 28,327 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 28,058 मामलों में पीड़ित लड़कियां थीं।

14092 मामलों में पीड़िताएं 16-18 वर्ष की किशोरियां :- आंकड़ों का और गहराई से अध्ययन किया गया, तो सामने आया कि पॉक्सो के तहत दर्ज मामलों में से सबसे ज्यादा 14,092 मामलों में पीड़िताएं 16-18 वर्ष की किशोरियां थीं। इसके बाद 10,949 पीड़िताएं 12 से 16 उम्र की थीं। लड़के-लड़कियां दोनों ही इस तरह के अपराधों के आसान शिकार हो सकते हैं, लेकिन एनसीआरबी के आकंड़ों से यह साफ पता चलता है कि सभी उम्र वर्ग में लड़कियां यौन अपराधों की सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं।कोविड काल में लड़कियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। उनकी शिक्षा तक पहुंच और अधिक प्रतिबंधित हो गई, बाल विवाह के जोखिम बढ़ गए हैं। हिंसा और यौन शोषण के शिकार हाने की आशंका बढ़ गई है।

शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी के पहलू भी अहम , क्राई की पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी की निदेशक प्रीति महारा ने कहा, बच्चों के खिलाफ अपराधों का खामियाजा लड़कियों को भुगतने की घटनाओं को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। असल में यह समझना बेहद जरूरी है कि संरक्षण की चुनौतियों के साथ शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी से जुड़े पहलू भी बालिकाओं के सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं।एक मजबूत बाल संरक्षण तंत्र की जरूरत पर जोर देते हुए महारा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में लड़कियों की शिक्षा और बाल संरक्षण प्रणालियों को मजबूत करने के मामले में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन महामारी से इन प्रयासों के विकास को धक्का लगा है।

महारा ने कहा, लड़कियों की स्थिति कमजोर हो गई है, खासतौर पर उनके शिक्षा प्रणाली से बाहर होने से उनकी सुरक्षा की बड़ी दीवार गिरने की आशंका है। महामारी के दौर में लैंगिंक आधार पर संवेदनशील और जवाबदेह संरक्षण के प्रयासों की जरूरत है।