डी के भाई से बात हुई है, डी के ने बताया है, डी के—–

डी के भाई की प्रथम पुण्यतिथी पर श्रद्धांजलि ….

जो पत्रकारिता जगत में  भाई——– सक्रिय रहे हो, विधि व्यवसाय ,वाणिज्यकर या श्रमिको के संगठनो और सम सामयिक विषयो पर जनता के बीच प्रतिक्रिया का मंच साझा करने में हिस्सेदार व भागीदार बनते थे, उनके लिए डी के का मुस्कराता हुआ चेहरा भुलाना बड़ा मुश्किल है.

डी के दिनेश है या देवेन्द्र कभी किसी ने जानने समझने की कोशिश नही की, क्योंकि जो भी उनसे पहली बार मिलता वह उनसे ऐसा घुलमिल जाता कि उसके पास समय ही नही रहता कि डी के के बारे में ज्यादा जाने ! और फिर धारा प्रवाह उनकी बातचीत में कही कोई अंतराल नही रखना चाहता था ..

कानून के जानकार होने से लोगो को लगता था कि डी के से बतलादो , गाईडेंस व डिफेंस दोनो मिल जायेगा और होता भी ऐसा ही था , डी के पत्रकारिता में स्थानीय से लेकर अंतराराष्ट्रीय सभी विषयो पर बेवाक कलम चलाते थे, डी के  का लिखा हर एक अल्फाज एक दस्तावेज की तरह होता था । विनम्रता इतनी कि , उनकी उपस्थिति भी मीठे शब्दो की गूंज से आभाषित होती थी—–बड़े भाई ,बड़े भाई ,के बोल मुस्कराता चेहरा,जुड़े हाथ , डी के की उपस्थिति आज भी अहसास कराते है।

प्रेस कांपलेक्स के प्रथम तल के आंगन पर महान और दिवंगत महापुरुषों की फोटो पर फूलमाला चढाकर उनका स्मरण कर लेना , डी के के लिए पुण्यात्माओ का आशीर्वाद लेने की तरह था।

“आवाज दो हम एक हैं ” का नारा किसी बैनर के साथ , हमारे मन के चल चित्र में डी के की वह छबि उतारता है , जो सड़को पर संघर्ष कर अपने अधिकारो के लिए एकजुट होने का संदेश देती है। पर्यटन प्रेमी डी के देश के अनेक हिस्सो में गये,किंतु वहां वे एक हस्ताक्षर बन कर अपने शहर छिंदवाड़ा का नाम रेखाकिंत कर गये।

दूसरो के दुख दर्द में डी के अपने शरीर में कब गंभीर बीमारी के चपेट में आ गये कि,पता ही नही चला,कि फिर उन्हें वापिस लाना असंभव हो गया।

किंतु नाम में क्या रखा है,कर्मो से याद रखा जाऊं कि , कालजयी स्मृतिया देकर डी के हम सबके साथ है..

गुणेन्द्र दुबे , वरिष्ठ पत्रकार (uni) , छिंदवाड़ा