जीवन प्रबंधन की गीता से बढ़कर कोई किताब नहीं है : प्रो. सिंह

विश्वगीता प्रतिष्ठानम की छिंदवाड़ा इकाई द्वारा आयोजित सतपुड़ा विधि कॉलेज में विधि के छात्रों के उत्कृष्ट जीवन प्रबंधन के लिए गीता स्वाध्याय के कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता बतौर बोलते हुए चांद कॉलेज के प्रेरक वक्ता प्रो.अमर सिंह ने कहा कि गीता कृष्णमुख से निकला जीवन प्रबंधन का संविधान है। यह प्रदूषित चित्त की परिमार्जक औषधि है। जीवन प्रबंधन की गीता से बढ़कर आज कोई किताब नहीं छपी है। गीता भय संदेह व भ्रम के असुरों की विनाशक है। व्यक्ति के लिए जीवन में गलत सोच ही सबसे बड़ी समस्या है। सही ज्ञान सभी समस्याओं का अंतिम समाधान है। निश्वार्थ होना उन्नति व समृद्धि का एक ही रास्ता है। सही नियत से किया हमारा हर कार्य प्रार्थना बन सकता है..

नागपुर से पधारे गीता मर्मज्ञ पंडित श्रीनिवास राव ने अपने उद्बोधन में कहा कि गीता दर्शन कहता है कि व्यक्ति अपने अहम का परित्याग कर सच्चे आनंद की अनुभूति कर सकता है।

हमें हर रोज उच्च चेतना से जुड़ना चाहिए। हम जो सीखते हैं, उसी के साथ जीवन जीना चाहिए। जब तक कार्यसिद्धि प्राप्त न हो जाए, तब तक काम को छोड़ना नहीं चाहिए। विश्वगीता प्रतिस्थानम छिंदवाड़ा के संयोजक नेमीचंद व्योम ने कहा कि गीता हमें बताती है कि हमें ईश्वर से आशीर्वाद स्वरूप मिली चीजों की कीमत करनी चाहिए। हमें अपने चारों तरफ बिखरी दिव्यता का अनुभव करना चाहिए। बिना आत्मसमर्पण किए सत्य का आभास नहीं होता है। अपने दिमाक को उच्च चेतना पर स्थित करना चाहिए। वाह्य दुनिया के मायावी रूप से अलग हो जो दिव्य स्वरूप है, उससे जुड़ना चाहिए। हमें अपनी दृष्टि के अनुरूप जीवन जीना चाहिए।

 

सतपुड़ा विधि कॉलेज के प्राचार्य डॉ. वेद प्रकाश तिवारी ने कहा कि गीता का संदेश हमें सदैव प्राथमिकता दिव्यता को देने पर बल देता है। अच्छा होना स्वयं में पुरुस्कार होता है। खुशी देने वाली चीजों के ऊपर सही चीज को चुनना ही शक्ति होती है। हमें अंत में ईश्वर के साथ अपना मिलन करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। कार्यक्रम में विधि के छात्रों को गीता की एक एक प्रति मुख्य अतिथि के हस्ते वितरित की गई।