‘गीता ज्ञान प्रभा’ धारावाहिक .. 2

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलियाजी द्वारा रचित ‘गीता ज्ञान प्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।

उन्ही द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक की दूसरी कड़ी ..

अध्याय- एक

            -:  अर्जुन विषाद योग :-

श्लोक ..(४)

इसके सिवा और भी योद्धा, हैं पाण्डव की सेना में,

क्षाम धर्म में पारंगत, निष्णात शस्त्र की विद्या में

निपुण बहुत जो युद्ध कला में, उनके नाम बताता हूँ,

अर्जुन-भीम समान वीर, जो पहिले उन्हें गिनाता हूँ ।

 

कहलाते युयुधान, दूसरा नाम सात्यकी है इनका,

मत्स्य देश के नृप विराट, जिनकी न रही कोई समता ।

नृपति द्रुपद जो महारथी जो सखा आपके बचपन के,

बढ़ा रहे अधिकाधिक बल पाण्डव सेना का ये जुड़े के ।

श्लोक ..(५,६)

धृष्टकेतु, सुत शिशुपाल का, चेदिराज का राज कुँवर,

चेकितान, अतिरथी, वृष्णिवंशीय रहा जो सैन्य प्रवर ।

पुरजित, कुन्तिभोज, काशीपति, शैब्य सरीखे महारथी,

युधामन्यु, विक्रांत, उत्तमौजा, जो योद्धा वीरव्रती ।

 

दुर्योधन ने कहा देखिए, पुत्र सुभद्रा का गुरुवर,

अर्जुन जैसा दीख रहा है, अर्जुन जैसा रहा निडर ।

बालक होकर भी अभिमन्यु, समता करता वीरों की,

प्राणों की परवाह न उसको, फिकर न उसको तीरों की ।

 

उधर देखिए वीर वेष में, पुत्र द्रोपदी के सारे,

है प्रतिरुप पाण्डवों के वे, अस्त्रों शस्त्रों को धारे ।

नही किसी से कोई भी कम रण-कौशल बल विक्रम में,

गिनती करें कहां तक उनकी जो जुड़ आए हैं रण में । क्रमशः..