44 लाख की बोली लगा ,खरीदा सरपंच ..

बीते कुछ वर्षों से राजनीतिक दलों ने लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल कर रख दी है !  जिस तरह से कुछ राज्यों में  बहुमत होने के बावजूद भी सरकार बन नहीं पाई या फिर बहुमत के बाद भी सरकारें खरीद-फरोख्त कर गिरा दी गई !  राजनैतिक दलो के लिए यह आम बात हो परन्तु इसका असर हमें अब परिलक्षित हो रहा है ! शायद यह बात जनता भी भली-भांति जाने लगी है कि अब उसके वोट की कीमत और भावनाएं की कोई कद्र इस लोकतंत्र में बची नहीं है,  हर चीज बिकाऊ है ! तो क्यों ना हम कुछ राशि निर्धारित कर उस राशि का उपयोग क्षेत्र विकास और अधोसंरचना विकास के लिए क्यों ना खर्च कर ले, ताकि विकास के नाम पर जब हमें ही करना है तो हम राजनीतिक दलों को अपने जनप्रतिनिधि के हाथो क्यों बिकने  दे ! जनप्रतिनिधि भबिष्य में बिक या अन्य दलो द्वारा खरीद लिया जाता है तो उक्त राशि उसकी खुद की होगी ? इससे जनमत का कोई सम्मान नही और न ही राशी पर जनता या क्षेत्र का अधिकार … राकेश प्रजापति 

अब जनप्रतिनिधि मतपेटी से नहीं बल्कि धनपेटी (तिजोरी ) से निकलने लगे हैं ! इसका सटीक उदाहरण अशोकनगर जिले के भटोली ग्राम पंचायत में  साबित कर दिखाया है ! जहां सरपंच के लिए बकायदा ग्रामीणों की बैठक होती है और उसमें ₹21000 लाख की राशि के साथ सरपंच पद की बोली पर बोली लगाई जाती है और यह बोली 44 लाख रुपयों तक जा कर थाम जाती है !  44 लाख रुपयों की राशि के एवज में सरपंच पद ग्रामीणों द्वारा सहमती से चुन लिया जाता है ! प्रक्रिया में गांव वालों का किसी भी प्रकार का कोई विरोध नहींरहा !

लोगों से बात करने पर उनका कहना है कि उक्त राशि गांव के विकास और मंदिर निर्माण में खर्च की जाएगी ! इसके चलते सरपंच पद के लिए कोई भी व्यक्ति फार्म नहीं भरेगा ! इस तरह २१वीं सदी के लोकतंत्र में ₹44 लाख में सरपंच पद नवाजा गया  ! मध्य प्रदेश का पहला सरपंच चुन लिया गया.

ग्राम भटौली में मंदिर में एक बैठक बुलाई गई. जिसमें 4 प्रतिभागियों ने सरपंच पद के लिए दावेदारी पेश की. ग्रामीणों के बीच रुपयों की बोली लगाई गई. यह बोली सरपंच पद के लिए 21 लाख रुपए से शुरू होकर 44 लाख तक पहुंची. अंतिम बोली गांव के ही सौभाग सिंह ने लगाई. ग्रामीणों की मानें तो सबसे ज्यादा बोली लगाने पर सौभाग सिंह को निर्विरोध सरपंच चुन लिया गया. इसके बाद गांववालों ने तय कि सौभाग सिंह के खिलाफ कोई मैदान में नहीं उतरेगा. जबकि भटोली में मतदान तीसरे चरण में होना है.

इस मामले में कलेक्टर ने कहा कि मामले की जांच करेंगे. जानकार बताते हैं कि गांव में इस तरह सरपंच चुनना कानूनी रूप से सही नहीं है. जो भी चुनाव लड़ेगा उसे फॉर्म भरना होगा. सरपंच पद पर एकमात्र फॉर्म आता है और वह वैध पाया जाता है तो वह सरपंच चुन लिया जाएगा. वह कोई भी हो सकता है, चाहे बोली लगाने वाला ही क्यों न हो.

कहीं आप भी किसी पद के इच्छुक तो नही ? अगर है तो देर किस बात की बोली पेटी से शुरू होगी और खोखे तक पहुँच सकती है ! यह इस बात पर निर्भर होगा की पद कितना मलाईदार है …