‘शाबाश’ जिसने नेताओ को पाठ पढ़ा दिया….

बिशेष टिप्पणी …………

छिंदवाडा जिले के बीते 40 बर्षीय कांग्रेस के राजनैतिक इतिहास में कल का दिन वाकई राजनीति की आत्मा को परिभाषित कर गया ! दोनों ही राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को इससे सीख भी लेनी चाहिए कि वाकई राजनीति समाज सेवा का ही परिष्कृत रूप है ! ना कि अपने आकाओं को खुश करने के लिए जनता की समस्याओं को नजरअंदाज कर सिर्फ अपने नेता को फूल माला पहनाना, चरण वंदना करना और अपना चेहरा दिखा कर अपनी उपस्थिति का एहसास कराना ही राजनीति नहीं बल्कि जनता के लिए उनके दुख दर्द और समस्याओं के साथ-साथ भविष्य निर्धारण के लिए किया गया कर्म ही समाज सेवा सही मायनों में राजनीति है ….!
इस बात की सीख कल एक नौजवान कांग्रेस के अनुषांगिक संगठन nsui का कार्यकारी अध्यक्ष जो शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में चल रही अनियमितताएं, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की समस्याओं को लेकर संघर्ष करता हुआ नजर आया ! गौर करने बाली बात यह थी कि ठीक उसी समय जिले के सांसद नकुलनाथ और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का आगमन हुआ ! उनके आगमन को लेकर जिले भर के छोटे-बड़े कांग्रेसी नेताओं की उपस्थिति हवाई पट्टी और शिकारपुर पर रही हर कोई अपने प्रिय नेता को अपनी शक्ल दिखने की जद्दोजहद में संघर्ष करता हुआ दिखाई पढ़ रहा था !      जबकि उसे भी अपने साथियों के साथ वहां होना चाहिए था !

परंतु नौजवान ने अपने जिले के विद्यार्थियों और संस्था की साख बचाने के लिए  संघर्ष,आंदोलन का रास्ता चुना और अनजाने में ही राजनीतिक दलों और नेताओं व् राजनीति करने वालों को आईना दिखा दिया की सही मायनो में राजनीती कैसे होनी चाहिए ! जनहित की आवाज बन व्यवस्था को पटरी पर लाना सच्चे अर्थो में राजनीति है ! यह अलग बात है की नौजवान के इस कर्म पर उसे पारितोषिक मिलाता है या दण्ड  ? यह तो कांग्रेस पार्टी और कमलनाथ  निर्धारित करेंगे !  परन्तु मौजूदा दौर के नेताओं में ऐसी नश्ल के जाबांज कम ही देखने को मिलते है
ऐसा नहीं है कि नेताओं को खुश करने की यह परंपरा कांग्रेस में ही है अपितु यह मर्ज सभी राजनीतिक दलों की मांस – मज्जा में समा चुका है, इसके निकट भविष्य में ठीक होने की संभावना तो दूर-दूर तक नजर नहीं आती ! परंतु सच्ची राजनीति और जनता की आवाज बनने की चाह ही व्यक्ति को जाने अनजाने में नेता बना देती है या जनता उसे नेता मान लेती हैं! राजनेताओं को इससे कुछ सिख लेनी चाहिय , इसे चरितार्थ कर राजनीती की आत्मा को पुनर्जीवित करना चाहिए ! जो मौजूदा दौर में तार-तार हो चुकी है राजनीतिक दुशाला इतनी मलीन और भ्रष्ट हो चुकी है कि आज इस पथ पर अग्रसर होना कोई पसंद नहीं कर रहा हैं !                                                            राकेश प्रजापति