योग अस्थिर बुद्धि को पात्रता प्रदान करता है ..

छिंदवाडा /चांद कॉलेज में एक माह तक चले वर्चुअल योग प्रशिक्षण समापन समारोह को संबोधित करते हुए योग प्रशिक्षक योग रामशंकर दियावर ने कहा कि योग व्यक्ति को भारत की तात्विक शास्त्रीय ज्ञान की सनातनी परंपरा से जोड़ता है। यह सूक्ष्म विश्व वाह्यजगत व वृहदविश्व अन्तःजगत का व्यापार है। यह अस्थिर बुद्धि को पात्रता प्रदान करता है। योग चंचल बुद्धि,अहंकार व चित्त वृत्तियों के संयमीकरण से संतुलित जीवन जीने की राह खोलता है। यह उत्तेजित,अशांत व अस्थिर मन को संकल्पित बनाकर ज्ञान अधिगम योग्य बनाता है..

प्राचार्य प्रो. डी. के. गुप्ता ने कहा कि योग एकात्म चित्तबद्धता,विषय की एकाग्रता, इंद्रियनिग्रह व शांत मनःस्थिति स्थापित करता है। अविकसित मन बुद्धि को ग्रहणशील बनाकर पात्रता बढ़ाता है।

प्रो.अमरसिंह ने योग से होने वाले फायदों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राप्त ज्ञान का धुंधला हो जाना व्यक्ति में कुपात्रता विकसित करता है, जिसका स्थाई इलाज योगाभ्यास से ही संभव है। चित्त की संस्कार भूमि में बुद्धि के विकास की जगह उपकरणों की विलासिता परोसना मेधा को गहराई छूने से वंचित करना है।

योग हमारे हृदय प्रदेश में ईश्वरीय आत्मतत्व का विकास कर ब्रह्मतत्व से साक्षात्कार कराता है। प्रशिक्षण प्रभारी प्रो. जी. एल. विश्वकर्मा ने कहा कि आत्मतत्व को जानना ही जीवजगत का अंतिम उद्देश्य है। यौगिक तपश्चर्या से सिंचित श्रद्धा बुद्धि का अनुष्ठान करती है।

योग जनित पुरुषार्थ चरम आत्मोत्कर्ष प्राप्ति का जरिया है। योग ज्ञान संपदा के व्यावहारिक प्रयोग में तमाम मानवीय समस्याओं, उलझनों और विपत्तियों का निराकरण संभव है।