और फिर हर हाथ में कालिख होगी….?

कल चौरई में किसान आन्दोलन समापन के दौरान SDM के चेहरे पर कालिख पोतने की घटना ने जिले में प्रसासनिक सेवा में कार्यरत नौकरशाहों की धमनियों में उबाल आ गया है और आये भी क्यों न ? मामला भी भर्त्सना योग्य है ! हम इस घटना का कहीं से भी समर्थन नही करते है ? परन्तु इतना जरुर कहना चाहेंगे की मात्र 25  मिनिट में जिस त्वरित गति से कायवाही की गई , उस तरह की कार्यवाही आम जनता के लिए की गई हो , ऐसा पिछले कई सालो में देखने को नही मिला है ? जिला पुलिस प्रशासन की कार्यवाही वाकई काबिले तारीफ है ! पुलिस की ऐसे ही कार्यवाही की देश को दरकार है ! और ऐसा होना भी चाहिए ? परन्तु सबाल यह उठता है की नौकरशाहों , कर्मचारियों और आम जनता में क्या भेद है ? इनके लिए क्या अलग अलग क़ानून है ?           राकेश प्रजापति …………

कल की घटना के बाद कुछ ही देर में राज्य प्रशासनिक सेवा में कार्यरत नौकरशाहों की यूनियन ने चन्द पत्रकारों को बुला कर अपना विरोध दर्ज कराते हुए दोषीयों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाही की मांग जिला कलेक्टर से की ! जिला कलेक्टर सौरभ सुमन ने भी राज्य प्रशासनिक सेवा में कार्यरतर कर्मचारियों को निराश नही किया ! त्वरित रासुका के तहत 22 लोगो के ऊपर मामले दर्ज करा दिये गए ! यह सब जिस गति से हो रहा था उसका स्वागत किया जाना चाहिए ! परन्तु अगर कोई छोटा ओहदे बाला कर्मचारी या आमजन किसी प्रताड़ना का शिकार होता है तो यह तेजी कहाँ चली जाती है ? यह सबाल जहन में ज्वालामुखी सा धधकता है ? क्या इस बात का जवाब , जिनकी जबावदेही बनती है उससे नही पूछा जाना चाहिए ? शायद इनके पास इस बात का जवाब नही मिलेगा ? जिला एवं पुलिस प्रशासन की इस दोगली कार्यप्रणाली ही आमजन में आक्रोश पैदा करती है ? जनता का यही आक्रोश कालिख पोतने बाली धटनाओं की असली वजह है ?

जिला एवं पुलिस प्रशासन की इस दोगली कार्यप्रणाली की एक बानगी देखिये की किस तरह एक अधिकारी छिंदवाडा रेंज के रंगीन मिजाज रेंजर सुरेन्द्र राजपूत ने अपने अधीनस्थ महिला कर्मचारी के साथ अश्लील वार्तालाप और गंदे इशारे करके लेंगिक हिंसा कर उस पर अनैतिक कार्य करने के लिए लगातार दवाव बना रहा है ! बबजूद इसके की इस वनपरिक्षेत्र अधिकारी की पूर्व में शिकायत होने पर वरिष्ठ अधिकारी द्वारा चेतावनी देने के बाद भी इस अधिकारी की पूर्व वन मंडल छिंदवाड़ा मे पदस्थ वनपरिक्षेत्र अधिकारी सुरेंद्र सिंह राजपूत पर उनके अधीनस्थ वनपरिक्षेत्र कार्यालय मे पदस्थ आदिवासी महिला कर्मचारी ने बुरी नियत रखकर अश्लील वार्तालाप और गंदे इशारे करके छेड़छाड़ करने की जांच कर आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग करते हुए पुलिस अधीक्षक छिंदवाड़ा , जिला कलेक्टर के सामने उपस्थित होकर अपने पर हुए अत्याचार की कथा विस्तार से सुनाई ,

परन्तु आज दिनांक तक् न तो वन विभाग , पुलिस प्रशासन और न ही जिला प्रशासन द्वारा वासना के भूखे भेडिये रेन्जर पर कोई कार्यवाही नही हुई ? और तो और उसे विभाग के आलाधिकारी रंगीन मिजाज रेंजर को बचाने का प्रयास कर रहे है ?  इस घटना से क्या जिला प्रशासन का दोगलापन उजागर नही होता है ? क्या आदिवासी महिला कर्मचारी की प्रताड़ना , SDM के मुख पर कालिख पोतने से कम है ? क्या अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए अलग अलग क़ानून है ? या फिर इस लोकतान्त्रिक देश में महिला और पुरुषो के लिए अलग क़ानून है ? इन सब सबालो के जबाब जिम्मेदारो को देना ही होगा ? यही लोकतान्त्रिक व्यवस्था की खूबसूरती है ! इसे बरकरार रखने की जिम्मेदारी इन्ही नौकरशाहों की है ! वर्ना ये तश्वीर बदसूरत हो जायेगी ! जनता सडको पर होगी ! और फिर हर हाथ में कालिख होगी ? जनता ही मुकदमा दायर करेगी , वकील और जज की भूमिका में भी जनता होगी ? तब शायद प्रकरण की सुनवाई अदालतों में नही सडको पर होगी ? आवाम की फिजा बदल रही है उसी के संकेत गाहेवगाहे खलिख पोतने की घटनाओं से मिल रहे है ? ……….सावधान