छिन्दवाड़ा में बदलेगा चुनाव का पारंपरिक तरीका..

निगम चुनाव ने बदली परिपाटी, कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय दलों में युवाओं को मिलेगी तवज्जो

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, बावजूद छिन्दवाड़ा में चुनावी राजनीति में दशकों से परिवर्तन के नाम पर सिर्फ चेहरें बदले जा रहे थे लेकिन परिपाटी वहीं की वहीं। ऐसे में बीते नगर निगम चुनावों के अप्रत्याशित नतीज़ों ने एक बार फिर छिन्दवाड़ा की पारंपरिक चुनावी परिपाटी को बदलने का बिगूल फूंक दिया है। जिससे छिन्दवाड़ा में परिणाम उन्मुखी द्वितीय पंक्ति के युवा नेताओं को तवज्जो देने की मजबूरी दोनों ही राष्ट्रीय पार्टी के समक्ष बनी हुई है …. संदीप वर्मा की रिपोर्ट 

जिले के राजनीतिक पंडितों की माने तो छिन्दवाड़ा कांग्रेस में नई परिपाटी की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ निगम चुनाव में आम कार्यकर्ता को मैदान में उतारकर कर चुके हैं। ऐसे में निगम चुनाव के बाद विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस छिन्दवाड़ा, जुन्नारदेव, सौंसर तथा चौरई विधानसभा क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन कर सकती है। इसी तरह भाजपा में नई परिपाटी शुरू होने की आहट छिन्दवाड़ा विधानसभा से सुनाई देने लगी है, जहां उपचुनाव में हाथ आज़मा चुके स्थापित भाजपा नेता जिला अध्यक्ष विवेक बंटी साहू और निगम क्षेत्र के महारथी योगेश सदारंग के साथ ही भाजपा का आम कार्यकर्ता संदीप सिंह चौहान भी विधानसभा के लिए ताल ठोक रहा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि परिवर्तन की बयार में कांग्रेस और भाजपा अपने किन युवा तुर्कों पर दांव लगाती है।

कांग्रेस करेगी बड़े परिवर्तन :-

आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस छिन्दवाड़ा, जुन्नारदेव, सौंसर तथा चौरई विधानसभा क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन का मन बना चुकी है, जिसका इशारा समय-समय पर साहब अपनी नाराजगी और नगरीय निकाय चुनावों की समीक्षा के दौरान कर चुके हैं। जानकार बताते हैं कि जिला पंचायत चुनाव, नगर निगम और नगरीय निकाय चुनावों की समीक्षा के बाद जुन्नारदेव, सौंसर तथा चौरई में कांग्रेस नए चेहरों को मौका दे सकती है। वहीं छिन्दवाड़ा में चंद्रभान बनाम दीपक का पुराना दौर खत्म कर साहब अपने परिवार से ही किसी को मैदान में उतार सकते हैं।

भाजपा में परिवर्तन जरूरी नहीं मज़बूरी :-

युवाओं का दम और पार्टी कैडर की ताकत पर चुनाव जीतने वाली भाजपा की स्तिथि पूरे प्रदेश में छिन्दवाड़ा से खराब कहीं नहीं है। बीते चुनावों में भाजपा मुक्त भारत का नारा भी छिन्दवाड़ा से ही बुलंद हुआ था। जिसके पीछे स्थानीय क्षत्रपों की निरंकुशता और जिला मुख्यालय में जारी अहम की लड़ाई बड़ा कारण रहा है। ऐसे में पिछले चुनावों में 7 की 7 सीटें गवाने वाली भाजपा के लिए अपनी रणनीति में परिवर्तन जरूरी ही नहीं मज़बूरी बन गया है।

राजनीतिक जीत का ‘विक्रम’ मंत्र :-

नगर निगम चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम अहके की अप्रत्याशित जीत ने सारे राजनीतिक समीकरणों को धराशाही कर दिया है। सोशल मीडिया के जमाने में अपडेट और अपग्रेड हो रही राजनीति में लुंगी पहन लकड़ी का गठ्ठर उठाये ‘विक्रम’ जीत का मंत्र साबित हो रहे हैं। जो छिन्दवाड़ा के युवाओं आकर्षित करने के साथ ही राजनीतिक में विश्वास और अपनापन का अहसास करा रहे हैं। जिसके चलते आगामी विधानसभा चुनावों में ’60 पार का नेता और युवाओं को मौका’ हार-जीत के गणित को प्रभावित करने की ताकत रखेगा।