लोकसेवकों को साधारण कारावास नही बल्कि सख्ती से निपटा जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। इस मामले में यह जरूरी नहीं कि दोषी पाए गए लोकसेवकों को साधारण कारावास की सजा दी जाए। वह भी तब, जब भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 इस बारे में कुछ खास उल्लेख नहीं करता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह अहम टिप्पणी कर्नाटक हाईकोर्ट के सितंबर, 2020 को दिए गए एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के दौरान की। पीठ ने याचिका खारिज कर दी । याचिका खारिज होने के बाद जस्टिस शाह ने कहा, मैंने सभी हाईकोर्ट व अदालतों को देखा है कि वे उन मामलों में केवल साधारण कारावास की सजा देती हैं, जिसमें सार्वजनिक अधिकारी आरोपी होते हैं ।धारा सात में केवल सजा की बात की गई है । इसमें साधारण कारावास के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। ये भ्रष्टाचार के मामले हैं, इनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सहमति जताते हुए कहा कि हम इसे विचार के लिए ध्यान में रख सकते हैं।

यह था कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला :- दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट ने विशेष कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया था, जिसके तहत याचिकाकर्ता को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा सात (सरकारी काम के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा पैसे लेने वाले लोक सेवक के अपराध के लिए दंड) और धारा 13(1)(डी) और 13(2) (एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार करना) के तहत दोषी ठहराया गया था।

इसी के साथ धारा सात के तहत दंडनीय अपराध के लिए छह महीने की अवधि के साधारण कारावास व जुर्माने की सजा के आदेश की भी पुष्टि की थी, लेकिन उसकी ज्यादा उम्र को देखते हुए दो साल की साधारण कारावास की सजा को कम करके डेढ़ साल कर दी गई थी।

धारा 7 में सात साल और धारा 13 में 10 साल तक की सजा का है प्रावधान :- भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा सात लोक सेवक को रिश्वत दिए जाने से संबंधित अपराध से संबंधित है। इसके तहत दोषी पाए गए किसी भी लोक सेवक को एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी, जो तीन साल से कम नहीं होगी।

हालांकि, ऐसी सजा सात साल तक की हो सकती है और आरोपी को जुर्माना भी देना होगा। धारा 13 यह निर्धारित करती है कि कोई भी लोक सेवक जो आपराधिक कदाचार करता है, उसे ऐसे कारावास की सजा दी जाएगी जो चार साल से कम नहीं होगी। हालांकि, यह 10 साल तक दी जा सकती है और आरोपी को जुर्माना भी देना होगा।

यह था मामला :- दरअसल, याचिकाकर्ता/आरोपी कर्नाटक के कवलगा गांव के ग्राम पंचायत सचिव के रूप में काम कर रहा था। शिकायतकर्ता की पत्नी को घर के निर्माण की मंजूरी के लिए वर्ष 2006-07 के दौरान आश्रय योजना के तहत 3,5,000 रुपये की राशि मंजूर की थी। यह राशि चार किस्तों में दी जानी थी। उसे दो किस्त दी गई।

तीसरी किस्त देते वक्त याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता की पत्नी के पक्ष में चेक देने के लिए 500 रुपये मांगे, जिस पर शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त पुलिस से संपर्क किया, जहां विभिन्न धाराओं में आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई।                                                                   साभार :मिडिया रिपोर्ट