राजनैतिक अस्थिरता के वीच असली बाजीगर कौन ….

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे के बाद प्रदेश में जिस तरह के राजनीतिक हालात बन गए हैं, इससे प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता की स्थिति पैदा ही गई हैं। भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रहे शह और मात के खेल में कौन जीतेगा ? यह फ्लोर टेस्ट में साबित होगा ? मगर अभी तो सिंधिया खेमे के 6 मंत्री सहित 22 विधायकों पर सभी की नजर है। इन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा सौंपा है। अध्यक्ष द्वारा इस्तीफा स्वीकार किए जाने की स्थिति में 22 सीटों पर उपचुनाव होना तय है ! ऐसा ही कुछ भाजपा खेमा भी चाहता है , मगर कांग्रेस की मंशा विधानसभा भंग कराकर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव कराने की है। अब देखना है कि सूबे में मध्यावधि चुनाव होते हैं या फिर 22 सीटों पर उपचुनाव ?
अभिभाषण से पहले हो शक्ति परीक्षण :- भाजपा की पूरी रणनीति राज्यपाल के अभिभाषण के पहले ही फ्लोर टेस्ट कराने पर टिकी है। भाजपा राज्यपाल लालजी टंडन से इसकी मांग भी करेगी। भाजपा का तर्क है कि कांग्रेस सरकार अल्पमत में है, तो फिर अभिभाषण कैसा ? सबसे पहले फ्लोर टेस्ट ही हो। अब यदि पहले फ्लोर टेस्ट होता है, तो भाजपा के पास 107 विधायक हैं, वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस के पास सिंधिया खेमे के 22 विधायक छोड़कर केवल 92 विधायक हैं। यदि 4 निर्दलीय को भी मिला लें, तब भी कांग्रेस के पास 96 विधायक होते हैं। तीन विधायक बसपा-सपा के हैं ! यदि उन्हें भी मिला लें, तब भी कांग्रेस के पास अधिकतम 99 विधायक होंगे! परन्तु बहुमत के लिए 104 का जादुई आंकड़ा होना है ! ऐसे में फ्लोर टेस्ट भाजपा के हक में जा सकता है। इस कारण भाजपा पहले फ्लोर टेस्ट चाहती है।

पहले अभिभाषण करान चाहती है कांग्रेस की :- कांग्रेस की पूरी रणनीति सदन में पहले राज्यपाल का अभिभाषण करने पर टिकी है। सरकार होने के कारण विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है। विधानसभा सचिवालय पहले अभिभाषण के लिए तैयारी कर रहा है। कांग्रेस की रणनीति है कि यदि पहले राज्यपाल का अभिभाषण होगा, तो फ्लोर टेस्ट के पहले ही उसे अपने दांव खेलने का मौका मिलेगा। अभिभाषण के पहले, उस दौरान या बाद में भाजपा का कोई भी हंगामा होता है या कांग्रेस हंगामा कराती है, तो भाजपा विधायकों को निलंबित करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास रहता है। विधानसभा अध्यक्ष इस अधिकार का उपयोग करके भाजपा विधायकों को निलंबित कर देते हैं, तो संख्या बल का पूरा गणित बदल जाएगा। एक दर्जन विधायक यदि निलंबित हो गए, तो फ्लोर टेस्ट में कांग्रेस पास हो जाएगी। कर्नाटक में यह दांव सत्तारूढ़ दल के लिए फायदेमंद साबित हो चुका है। इसलिए यहां भाजपा को भी इसी दांव का खौफ है।
राज्यपाल से मिले भाजपा नेता :- भाजपा फ्लोर टेस्ट की गेंद को राज्यपाल के पाले में लाना चाहती है। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं भाजपा में शामिल हुए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यपाल से मुलाकात कर इसकी मांग की है। अब राज्यपाल चाहे तो अभिभाषण के पहले सीधे फ्लोर टेस्ट के लिए कह सकते हैं। ऐसे में फ्लोर टेस्ट में सिंधिया खेमे के 22 विधायक अनुपस्थित रहते हैं, तो मौजूद संख्या बल से फैसला होगा। वहीं यदि 22 विधायक आकर भाजपा के पक्ष में वोट कर देते हैं, तो सरकार गिर जाएगी। फ्लोर टेस्ट में यदि सरकार गिर जाती है तो विस अध्यक्ष इसकी घोषणा कर देंगे। फिर राज्यपाल चाहे तो विधानसभा भंग कर सकते हैं। ऐसे में मध्यावधि चुनाव होंगे या फिर भाजपा के दावे पर राज्यपाल उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं।
अंत में सुप्रीम कोर्ट ही रास्ता :- दरअसल, मप्र कांग्रेस के पास कर्नाटक की तरह सुप्रीम कोर्ट का रास्ता भी खुला है। फिर स्पीकर जब तक चाहें इस्तीफा स्वीकार करना लटका सकते हैं। वे बागी विधायकों को बारी-बारी से बुलाकर फैसला भी टाल सकते हैं। ऐसे में राज्यपाल भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।