मां बाप के आंसुओं की बूंद में धरा डूब सकती है : प्रो. सिंह

चांद कॉलेज में “मातृ पितृ दिवस: एक सांस्कृतिक अनुशीलन” विषय पर आयोजित परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक और कवि पं. शिवनारायण शर्मा ने कहा कि औलाद मां बाप के पसीने से महकती है। लोग मां बाप की नसीहत भूल जाते हैं, वसीयत नहीं। मां बाप की सेवा गुनाहों की सजा की जमानत है। जो मां बाप को नहीं संभाल पाते हैं, उनके भाग्य में ज्वाला भड़कती है। मां बाप के होने का अहसास नहीं होता है, न होने का खालीपन बहुत अधिक..

प्रो. अमरसिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि मां बाप के आंसुओं की बूंद में धरा डूब सकती है।अमन ने कहा कि बिना मां की दुआ और पिता के हौसले के कृपा नहीं पनपती है। अरुण ने कहा कि जिनकी वजह से जिंदगी मिलती हैं, उन्हें हमें नहीं भूलना चाहिए।

रिया ने कहा कि संतान की परवरिश साधना होती है और मां बाप की सेवा आराधना होती है। चंचलेश ने कहा कि मां की ममता और पिता की क्षमता का अंदाज नहीं लगाया जा सकता है। प्रधुम्न ने कहा कि जो अपने बच्चों से हारने में जीत माने वही पिता होता है।

अंकित ने कहा कि मां बाप की खिदमत ही जन्नत होती है। मोहिनी ने कहा कि बिना मां बाप की कदर के बरकत नहीं आती है। नेहा ने कहा कि मां बाप के आंसुओं में सब धर्म कर्म बह जाता है। अमृता ने मां बाप को दिखाई देने वाले ईश्वर कहा। संतोषी ने कहा कि जिन्होंने हमें शहजादों की तरह पाला, उन्हें हमें बादशाहों की तरह रखना चाहिए।

परिचर्चा में प्रो. डी. के. गुप्ता, प्रो. रजनी कवरेती, प्रो. आर. के. पहाड़े, प्रो. जी. एल. विश्वकर्मा, प्रो.सुरेखा तेलकर, प्रो. विनोद शेंडे और प्रो. रक्षा उपश्याम ने भी भाग लिया।