नियमो में उलझा तेंदूपत्ता तुड़ाई और बीड़ी का धंधा..?

कोरोना आपदा में ग्रामीण रोज़गार का अच्छा माध्यम बन सकते हैं बीड़ी, तेंदू पत्ता, मगर कैसे नियमो में उलझा तेंदूपत्ता तुड़ाई और बीड़ी का धंधा ….तेंदूपत्ता तुड़ाई का सीजन कोरोना आपदा से प्रभावित होने की स्थिति में आ गया है।  दूसरी तरफ  लघु कुटीर उधोग के तहत  बीड़ी बनाने एक तबका इसे वर्क फ्रॉम होम का सबसे बेहतर माध्यम में रहा है । यदि इन  दोनो को बनाये रखना है तो कुछ  सहूलियतें सरकार को नियमो आदि में देना होंगी। तेंदूपत्ता तोड़ने वाले और  बीड़ी कारोबार से जुड़े व्यापारी ,पट्टेदार और मजदूर सभी की निगाहें सरकार पर टिकी है। अलग अलग मंचो से इसे सरकार तक पहुचाया जा रहा है..सागर से विनोद आर्य की रिपोर्ट 

हाल ही में मध्य प्रदेश के प्रमुख वन सचिव श्री अशोक बर्णवाल ने सभी वन और ज़िला स्तरीय अधिकारियों को लिखा है कि तेंदूपत्ता आदिवासियों एवं ग्रामवासियों के लिए रोज़गार का महत्वपूर्ण माध्यम है। अतः लाक्डाउन रहते भी तेंदू पत्ता सीज़न २०२० में संग्रहण किया जाएगा। इसके कारण तेंदू पत्ता व्यापारियों और बीड़ी वालों में हड़कम्प मच गया है क्योंकि सोशल डिस्टन्सिंग के नियमों का पालन करते हुए तेंदू सीज़न करना लगभग असम्भव है। इस बार संग्रहित तेंदू पत्ते को भरने हेतु बारदाना ( जूट से बना वोरा) भी उपलब्ध नहीं हैं क्यूँकि इन्हें बनाने वाली जूट मिलें अभी तक लाक्डाउन के कारण बंद थीं।

मध्य प्रदेश बीड़ी उद्योग संघ की ओर से श्री अनिरुद्ध पिंपलापुरे  से इस सम्बंध में  बात की गयी तो उन्होंने यह बताया कि ऐसी स्थिति में तेंदूपत्ता संग्रहण बहुत कठिन होगा ! लेकिन यह भी सत्य है कि तेंदूपत्ता और बीड़ी ग्रामीण रोज़गार और सरकार को आमदनी भी उपलब्ध कराते हैं। साथ में उन्होंने ये बताया की बीड़ी पूर्णतः ऑर्गैनिक (जैविक) उत्पाद है जिसमें अनमैन्युफ़ैक्चर्ड (अनिर्मित) अनप्रोसेस्ड (असंसाधित) तम्बाकू का इस्तेमाल किया जाता है। सिगरेट या गुटका की तरह इसमें रासायनिक संसाधन न होने की वजह से यह कम हानिकारक होती है। इसलिए इसे अन्य तम्बाकू उत्पादों/पदार्थों के साथ नहीं रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त, बीड़ी को रात भर भट्टे में सेका जाता है जिसका तापमान ७० डिग्री सेल्सीयस से अधिक होता है और इसके बनने से खपत तक कम से कम १५ दिन तो लगते ही हैं। अतः इससे संक्रमण की कोई आशंका नहीं है। साथ ही इसे बनाने में न तो बिजली और न ही पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए इसका कार्बन पदचिह्न बहुत कम है। 

बीड़ी उद्योग वर्क-फ़्रोम-होम का सबसे अच्छा उदाहरण है। अभी बीड़ी न बनाने के कारण केवल मध्य प्रदेश के चार लाख बीड़ी श्रमिकों के घरों का चूल्हा बुझ गया है। बीड़ी कुटीर उद्योग है और घर-घर में बनती है और इस कारण ऐसी परिस्थितियों में यह साल भर ग्रामीण रोज़गार का बहुत सटीक माध्यम बन सकती है । अधिकांश बीड़ी श्रमिक पिछड़े वर्ग व अनुसूचित जाति से हैं।लेकिन वर्तमान केंद्रीय, प्रदेशों-की व ज़िला-स्तरीय नीतियों के अनुसार इसका निर्माण, भण्डारण, परिवहन ,विक्रय व इससे जुड़ी कच्चे व बने माल का आवागमन एवं अन्य गतिविधियाँ पूरी तरह से अनुमोदित नहीं हैं। उद्योग से जुड़े हुए सभी लोगों के सामने एक यही पहेली है कि पत्ता लें तो लें क्यों अगर इसकी बीड़ी नहीं बन सकती और बीड़ी बनायें तो बनायें क्यों अगर वह बाज़ार में बिक नहीं सकती! पश्चिम बगॉल में बीड़ी निर्माण और इससे जुड़ी अन्य गतिविधियों को करने की पूरी अनुमति दे दी गयी है।मध्य प्रदेश में निर्मित ७०% बीड़ी उत्तरप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और हरियाणा में बिकती है। इन राज्यों में बीड़ी को अन्य तम्बाकू उत्पादों के साथ रख इसका विक्रय रोक दिया गया है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान भी तेंदू पत्ता बेचने वाले राज्य हैं। तेंदू पत्ते का बीड़ी बनाने के अतिरिक्त कोई उपयोग नहीं। अतः मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्यों को तेंदू पत्ते व बीड़ी को अन्य तम्बाकू उत्पादों/ पदार्थों से अलग रखते हुए, इन्हें ग्रामीण रोज़गार उत्पन्न करने वाले कुटीर उद्योग मानकर, इनके सुचारु उत्पादन, भंडारण, परिवहन एवं विक्रय हेतु उचित नीतियाँ बनानी चाहिए।

उधर  प्रांतीय तेंदूपत्ता व्यापारी एशोशियेशन मध्यप्रदेश ने भी मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन देकर तेंदूपत्ता तुड़ाई में आने वाली परेशानियों के चलते तेंदूपत्ता तोड़ने में असमर्थता जताई है। इसके अध्यक्ष घनशयाम गर्ग ने मुख्य सचिव को पत्र भेजा है।भारतीय मजदूर संघ ने भी गृहमन्त्री अमित शाह को पत्र लिखकर इसमे कुछ रियायत देने की बात कही है।