“चट्टानों की छाती से दूध निकालने वाला चाहिए”: प्रो. सिंह

आंचलिक साहित्यकार परिषद की छिंदवाड़ा इकाई द्वारा “मैं क्यों लिखता हूं” पर काव्य प्रस्तुति और कवि,लेखक और कहानीकार श्री लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया के कथा संग्रह “पतझड़ के सावन” पर समीक्षा हेतु महेश जोशी व ईश्वर दयाल अथक के प्रमुख आतिथ्य एवं चांद कॉलेज  के प्रो.अमरसिंह की अध्यक्षता में पेंशन सदन में आयोजित समीक्षा गोष्ठी में प्रमुख समीक्षक पूर्व छिंदवाड़ा आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक अवधेश तिवारी ने अपनी कविता “छिद्धी भैया का ब्याह” में ग्रामीण जीवन की झलक को लोकगीत के माध्यम से जीवंत रूप में उकेरा और  “पतझड़ के सावन” कृति को समाज में घर गृहस्थी में आए दिन अंतरद्वंद्वों की चक्की में पिसते मानव की छटपटाहट को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है….

काव्य गोष्ठी में अपनी कविता पढ़ते हुए कवि रत्नाकर रतन ने पढ़ा: “पीठ जख्मी हो गई, क्या करें शाबासियों का, रोटियों के लाले पड़े, क्या करें आजादियों का।” वहीं लक्ष्मण प्रसाद डहेरिया ने अपनी काव्य पंक्ति “दोस्त दुश्मन की पहिचान होना चाहिए” से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

युवा कवि प्रत्यूष जैन ने लिखने के उद्देश्य को रेखांकित करते हुए कहा “शब्द का श्रृंगार ही नहीं है सृजन में, लेखनी के धर्म का संस्कार भी होना चाहिए।” प्रो. अमर सिंह ने “चट्टानों की छाती से दूध निकालने वाला चाहिए”,कवयित्री प्रीति जैन शक्रवार ने “तृप्त हुई स्तन पान कराकर”, राजेंद्र यादव ने “ज़िंदगी अपनी, पर उनकी बहुत हैं आपत्तियां” की रचना पढ़ी। नेमीचंद व्योम ने “चंद रजत के टुकड़े से स्वाभिमान बेचते हैं”, “शूल चुभा उनसे ही जिनको, सींचा लहू के कतरों से।” और दिनेश भट्ट ने लोकगीत “अंगना में आ गई उरईयां, छबीली जागी नईयां” सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया। अंकुर वाल्मीकि ने “माना कि ठंड में ठंडी ठंडी ठंड का दौर है,पर कुनकुनी धूप का मजा ही कुछ और है”, कवि नंद कुमार दीक्षित “शिकवा नहीं तुमसे, गलती हमारी थी” और संजय सोनी ने “कुंठित हो गई लेखनी, हरी गई जब सीता”,”पेड़ जितने पुराने थे कट गए, हम तुम्हारे रास्ते से हट गए” सुनाकर सभी का रोम रोम हर्षित कर दिया।

व्यंग्य कवि के.के. मिश्रा ने “चोटी की महिमा को” अपने शब्द गुंथित शब्द निरूपण से, कवि एम. के. पगारे ने “सब अपनी दुकान लगाए बैठे हैं,अपना अपना दर्द छुपाए बैठे हैं,चेहरे पर मुस्कान सजाए बैठे हैं” और कालिदास बघेल प्रेम ने “कहां जगत में वह पारस है”जैसी सुंदर प्रस्तुतियां दीं। रमाकांत पांडे ने “किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं”, मोहिता जगदेव ने “किसी पागल ने यह अपवाह उड़ाई होगी”, मंजू देशमुख “दिलों को दिलों से जोड़ती है मांटी” और रमाकांत सिंह मौर्य “लोहा पारस से मिलकर सोना बन जाता है” कविताएं सुनाकर सबको आत्मविभोर कर दिया। काव्य पाठ में कवि शशांक दुबे, अनिल ताम्रकार प्यासा, भोले प्रसाद नेमा, शिवेंदु कातिल ने भी अपनी रचनाओं से सभी को आनंदित कर दिया। आभार प्रदर्शन रामलाल सराठे ने हास्य कविता सुनाकर गुदगुदी कर दी।