श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 118 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 118 वी कड़ी.. 

सोलहवाँ अध्याय ..देवासुर-सम्पत्ति-विभाग योग (देवी और असुरी स्वभाव)

श्री भगवानुवाच :-

भय का आभाव रहता उसमें, रहता है अन्तःकरण शुद्ध,

यज्ञों का अनुष्ठान करता, वह दिव्य ज्ञान में निष्ठ बुद्ध।

वह दानशील तपशील रहा, आता उसको इन्द्रिय संयम,

वह सात्विक सरल उदार रहा, करता शास्त्रों का वह अध्ययन।-1

 

अपने मन का विग्रह करता, वह करे सत्यव्रत का पालन,

पालन वह करे अहिंसा का, करूणा अरू दया किये धारण।

त्यागी वह क्रोध न कभी करे, देखे न दूसरों के अवगुण,

कोमलता लज्जा को धारे, धारे दृढ़ निश्चय अपने मन।-2

 

मन में न लोभ का भाव रहे, धृति क्षमा तेज मन में धारे,

रह निरभिमान ईर्ष्या विमुक्त, तन मन में पावनता पाले।

देवी गुण जो प्राप्त पुरुष, लक्षण उसके ये हैं अर्जुन,

नित मुक्ति मार्ग पर बढ़ता है, उन्नति करता वह क्षण प्रतिक्षण।-3

 

प्रतिकूल आचरण करके भी, दिखलाता धर्म परायणता,

वह पाखण्डी, वह गर्वीला, जो धन विद्या पा इतराता।

अभिमान, क्रोध, अज्ञान, विपुल, निष्ठुरता को वह अपनाये,

लक्षण ये असुर प्रकृति के हैं, हे अर्जुन, वह न शान्ति पाये।-4    क्रमशः….