श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 111 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 111 वी कड़ी.. 

चौदहवाँ अध्याय गुणत्रय-विभाग योग (त्रिगुणमयी माया)

संतुष्ट न होता रजोगुणी, वह अधिकाधिक के लिए लड़े,

लालच लेकर अपने मन में, वह अपने सारे कार्य करे।

मन में रहती चन्चलता, वह विषय वासना युक्त रहे,

अपने प्रयास उद्यम सारे, वह लाभ कमाने हेतु करें।-12

 

जब बढ़े तमोगुण कुरू नन्दन, बढ़ता प्रमाद आलस्य बढ़े,

हे तमोगुणी स्वेच्छाचारी, जो अविहित वे सब कर्म करे।

सत्कर्म रहा जिनको सक्षम वह अकर्मण्य उनको न करे,

बस रहे मोह से ग्रसित सदा, अपने जीवन में तिमिर भरे।-13

 

सतगुणी पुरुष को उच्चलोक, लोकों का दिव्य भोग मिलता,

हे रज तम गुण से मुक्त रहे, सतगुणी वृद्धि सत की करता।

प्राकृत जग की अशुद्धियों का, सतगुणी पुरुष परिहार करे,

पुण्यात्माओं को प्राप्त लोक, वह ब्रह्मलोक जनलोक वरे।-14

यदि वृद्धि रजोगुण की होती, तो मरकर वह फिर मनुज बने,

कमों में जो आसक्त रहे, उस मानवकुल में फिर जन्मे ।

आचरण सुधार न पाया जो, मरता होकर जो तमोगुणी,

पशु-मूढ़ योनियों में जन्मे उस तमोगुणी की गति बिगड़ी।-15

 

सात्विकता शुद्धि प्रदान करे, दुःख प्रतिफल राजस कर्मों का,

तामस से बस अज्ञान बढ़े, पातक फल रहा कुकर्मो का।

परिणाम गुणों के सुख-दुख मय, चुनता चलता जग में प्राणी,

उद्धार न इसका हो पाता, जो बना रहे नित अज्ञानी।-16

 

सतगुण सम्पादित ज्ञान करे, बढ़ता है लोभ रजोगुण में,

अज्ञान, प्रमाद, मोह बढ़ता, जो मुक्त न हुआ तमोगुण से।

सुख-शान्ति बढ़े जब सत बढ़ता, जब बढ़े रजोगुण तृषा बढ़े,

विषयों की तृप्ति न हो पाती, तम बढ़ने से व्यभिचार बढ़े।-17   क्रमशः….