श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 108 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 108 वी कड़ी.. 

तेरहवाँ अध्याय : प्रकति-पुरुष-विवेक योग

जीवों के जो आकार विविध, इच्छाओं के परिणाम रहे,

सम्बन्ध न आत्मा का उनसे, जो यह देखे जो यह समझे।

विस्तार रहा परमात्मा का, जीवों में जिसने यों देखा

वह ब्रह्मतत्व को प्राप्त हुआ, उसने यथार्थ को ही लेखा।-30

 

आत्मा यह दिव्य सनातन है, अरू यह माया के परे रही,

दृष्टा शाश्वत तत्वों के जो, यह बात उन्होंने सत्य कही।

प्राकृत शरीर में रहकर भी, यह आत्मा रही अलिप्त सदा,

कुछ भी यह करती नहीं कभी, कर्मों का फल न उसे लगता।-31

 

ज्यों सर्वव्याप्त आकाश रहा, सूक्ष्मति सूक्ष्म रहता अलिप्त,

त्यों तन में ब्रह्मभूत जीव, बसता पर इनसे वह अलिप्त।

प्राकृत नेत्रों से आत्मा को, देखा न कभी जा सकता बसता

देहों में वह असंग, अति सूक्ष्म न पाया जा सकता।-32

जिस तरह अकेला एक सूर्य, ब्रह्माण्ड प्रकाशित कर देता,

देहावस्थित आत्मा त्यों ही, चेतनता तन में भर देता।

आलोक चेतना का ही है, संचारित जो करता जीवन

आत्मा है तो है तन जीवित, बिन आत्मा के मिट्टी है तन।-33

 

यह जीव व्यष्टि-चेतन है पर, परमात्मा है समष्टि चेतन ।

क्षेत्रज्ञ जीव, क्षेत्रज्ञ विभू वह क्षेत्र कि भासित है जो मन

यह भेद देह अरू देही का, साधन विभक्ति का बन्धन से पाते

हैं परमधाम अर्जुन जो तात्विक ज्ञान दृष्टि रखते।-34

॥ इति त्रयोदशम अध्याय ॥