श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 104 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 104 वी कड़ी.. 

तेरहवाँ अध्याय : प्रकति-पुरुष-विवेक योग

क्षण भंगुर प्राकृत वस्तु क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ कि ज्ञाता भिन्न रहा,

वह रहा क्षेत्र का स्वामी भी, वह चेतन अंश अभिन्न रहा।

अरू पार्थ ज्ञान के जो साधन, दिग्दर्शन उनका करवाता,

गह लेता है जो ज्ञान मार्ग, वह परम सत्य को पा जाता।-6अ

 

सत्कार करे कोई अपना, ऐसी न अपेक्षा हो मन में,

देहात्म बुद्धि से उठ ऊपर, साधे विनम्रता जीवन में।

पालन जो करे अहिंसा का, पीड़ा न किसी को पहुँचाये,

दो दम्भ भाव से रहित सदा, जो निरभिमानता पा जावे।-7

अभ्यास करे जो सहने का अपमान अनादर तिरस्कार,

जागा करते जिसके मन में, सबके प्रति अक्षय क्षमा भाव।

मन वाणी से जो सरल बहुत, व्यवहार कुटिलता रहित रहा,

सदगुरू का पदाश्रय गहकर, जो गुरू सेवा में निरत रहा।-8

 

भीतर बाहर से शुद्ध परम, दृढ़ निश्चय अविचल भाव रहे,

हो आत्म विग्रही, वीर व्रती, प्रतिकूल पदार्थ न ग्रहण करे।

इन्द्रिय भोगों से अनासक्त, मिथ्याभिमान से दूर सदा,

जो जन्म मृत्यु अरू जरा व्याधि, में आत्म परीक्षण युक्त रहा।-9

 

सन्तति पत्नी घर द्वारा वार, इनसे ममता न लगाव रखे,

समभाव रहे परिणाम भूले, अनुकूल की या प्रतिकलू रहे।

हो इष्ट प्राप्ति या हो अनिष्ट, पर शुद्ध भक्ति मुझमें अविचल,

एकान्तवास हो प्रिय जिसको, विषयों जन से जो रहे विरत।-10

 

करने स्वरूप साक्षात्कार, दृष्ट निष्ठा नित्य रहे जिसकी,

पाने को परम सत्य उत्सुक, अन्वेषण की प्रवृत्ति जिसकी।

घोषित करता मैं इन्हें ज्ञान ये तत्व ज्ञान के बीस रहे,

वह सब अज्ञान इतर इनसे, जो कुछ भी हो विपरित रहे।-11    क्रमशः…