श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 61 वी कड़ी ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 61 वी कड़ी ..     

छटवाँ अध्याय : – ध्यान-योग (अभ्यास)

जो मुझे देखता है सबमे, अरू सब कुछ मुझमें देख रहा

उसको मैं नहीं अदृश्य कभी, याने मैं उसके निकट रहा।

मुझको भी वह अदृश्य नहीं, उसका मैं ध्यान रखूँ प्रतिक्षण

उसका मन लीन रहा मुझमें, उसकी सुधि करता मेरा मन।-30

 

भगवान विष्णु अन्तर्यामी, वे सभी प्राणियों में बसते,

उसमें मुझमे जो योगीजन, कोई भी भेद नहीं करते।

मुझको, विष्णु को, समझ एक, करते हैं मेरा भजन सदा,

उनका निवास मुझमें रहता, मैं भी हूँ उनको सुलभ सदा।-31

 

जो जीवमात्र का परम सुहद उनका सुख दुःख अपना समझे

अपनी आत्मा की उपमा से, उनके सुख दुख का बोध करें।

वह योगी परम श्रेष्ठ अर्जुन, समता का भाव रखे सब में,

कल्याण हेतु उद्यत रहता, ईर्ष्या न रहे उसके मन में।-32

अर्जुन उवाच :-

अर्जुन ने कहा कि मधुसूदन, जिस योग क्रिया को समझाया,

पद्धति उसकी कैसी क्या हो, थोड़े में उसको बतलाया।

मन चंचल और अस्थिर यह, इस कारण मुझे कठिन लगती,

लगती है अव्यवहारिक प्रभु पद्धति यह अस्थायी लगती।-33

 

हे कृष्ण बहुत चंचल है मन, यह बस उद्वेग बढ़ाता है,

बलवान बहुत यह मधुसूदन, अपने हठ पर अड़ जाता है।

वश में करना आसान नहीं, यह वायुवेग से भी प्रचण्ड,

वश में हो सकती वायु, मगर इसके आगे है बुद्धि मन्द।-34   क्रमशः…