26 मासूमों की मौत का गुनाहगार कौन ?

आज की बात

जहरीला सिरप नहीं, जहरीला सिस्टम — मासूमों की मौत की जिम्मेदारी किसकी ?

✍️ टिप्पणी : राकेश प्रजापति 

मध्यप्रदेश के छिंदवाडा जिले में पिछले दिनों 24 मासूम बच्चों की मौत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि यहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था अब मौत बाँटने का अड्डा बन चुकी है। यह कोई हादसा नहीं, बल्कि शासन और प्रशासन की मिलीभगत से हुआ जनसंहार है।

कल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने यह आरोप लगाया कि “दवा कंपनियों ने भाजपा को करोड़ों का चंदा दिया और बदले में जहरीली दवा बनाने वाली कंपनियों से दंड का प्रावधान हटा दिया ”, तो यह केवल राजनीति नहीं, बल्कि उस सड़े हुए सिस्टम का आईना है जो अब जनता के पैसों से जनता की ही मौत लिख रहा है।

2 सितंबर से अब तक प्रदेश में 26 बच्चे मर चुके, और इस बीच उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने बयान दे दिया — कोई गड़बड़ी नहीं हुई !
यानी मरने वाले झूठे और बचाने वाले सच्चे ?
सरकार का यह ढुलमुल रवैया शर्मनाक ही नहीं, आपराधिक भी है।

स्वास्थ्य विभाग, खाद्य एवं औषधि विभाग और जिला प्रशासन — तीनों की लापरवाही से यह मौतें हुईं। पर हुआ क्या ? कुछ तबादले, कुछ निलंबन, और फिर वही पुरानी कहानी — असली गुनहगार सुरक्षित, और जनता ठगी हुई।
इस बार तो हालत इतनी भयावह है कि इन अधिकारियों पर धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज होना चाहिए।

प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के गैर जिम्मेदार बयान ने आग में घी डालने का काम किया है। कहना पड़ा — “ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं।”
क्या 26 मासूमों की मौत अब दिनचर्या बन गई है ?

क्या इन बच्चों की जान की कीमत भाजपा के चुनावी चंदे से भी सस्ती थी ?

23 सालों से सत्ता में बैठी भाजपा सरकार और उसके अफसरशाही का यह असली चेहरा है। मंत्रालयों में बैठे अधिकारी सत्ता की मलाई चाटते-चाटते इतने मदमस्त हो गए हैं कि अब उन्हें इंसान की जान का कोई मतलब नहीं रहा। अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं, धांधलियाँ मिलती हैं। निरीक्षक रिश्वत के बिना रिपोर्ट नहीं लिखते, और मंत्री टीवी पर सफाई देते हैं।

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की है — और अब यह मांग केवल कांग्रेस की नहीं, पूरे प्रदेश की जनता की बन चुकी है।
उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देना चाहिए। साथ ही तत्कालीन कलेक्टर और दवा नियंत्रण अफसरों पर हत्या का मामला दर्ज कर जेल भेजना चाहिए ताकि भविष्य में कोई अधिकारी लापरवाही से मासूमों की जान से खिलवाड़ करने की हिम्मत न करे।

सरकार यह न भूले —
वोट से आई सत्ता को जनता की आह भी डुबो सकती है।
यह 26 मासूमों की मौत नहीं, 26 सवाल हैं — जिनका जवाब डॉ मोहन यादव सरकार को देना ही होगा।