प्रधानमंत्री आवास योजना का मूल उद्देश्य था— बेघर को घर, कमजोर को सहारा, और वंचित को सम्मान।
लेकिन इस मामले में वही योजना एक परिवार की पीड़ा और बेबसी का कारण बन गई।
टिप्पणी : राकेश प्रजापति
यह घटना सिर्फ एक परिवार के बेघर होने की कहानी नहीं है, बल्कि यह स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली, उसके विवेक और संवेदनशीलता पर गहरे सवाल खड़े करती है। ग्राम पंचायत थावड़ी टेका निवासी पीड़ित – जसकरण चंद्रवंशी व उनके परिवारजन आज दरदर की ठोकरे खाने को मजबूर है !
प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण का उद्देश्य है कि हर परिवार को सम्मानजनक आवास मिले, लेकिन ग्राम पंचायत थावड़ी टेका के जसकरण चंद्रवंशी के परिवार के साथ जो कुछ हुआ, उसने इस योजना की मानवता और प्रशासनिक जवाबदेही दोनों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जसकरण चंद्रवंशी ने अपने पुराने, जर्जर एवं टूट चुके पैतृक मकान को हटाकर सरकारी भूमि बताए गए भू-भाग पर प्रधानमंत्री आवास योजना का मकान निर्माण प्रारंभ किया। ग्राम स्तर के अधिकारियों के मार्गदर्शन और दस्तावेजों के आधार पर यह निर्माण चल रहा था। परिवार को विश्वास था कि वे अब वर्षों बाद अपना पक्का घर पा सकेंगे।
लेकिन 30 जुलाई को एक शिकायत के आधार पर तहसीलदार टीम मौके पर पहुँची और निर्माण को अतिक्रमण बताते हुए मकान ढहा दिया।
उस दिन से चंद्रवंशी परिवार खुले आसमान में, अस्थायी तंबू में रहने को मजबूर है।
दो महीने से प्रशासन के चक्कर, लेकिन राहत नहीं ..
परिवार ने:
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जनसुनवाई में आवेदन किया
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कलेक्टर कार्यालय की कई बार दौड़ लगाई
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वीडियो और दस्तावेज भी प्रस्तुत किए
परिवार की वृद्ध सदस्य, जो उम्र और बीमारी से जूझ रही हैं, आज भी मिट्टी और ईंटों के ढेरों पर बर्तन, चटाई, और जीवन की बची-खुची वस्तुएँ लेकर गुजर-बसर कर रही हैं।
उन्होंने बार-बार यही कहा—
“हमने गलत नीयत से मकान नहीं बनाया था, हमें तहसील और सचिव ने जगह दिखाई थी।”
सबसे गंभीर सवाल
जब:
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मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्वीकृत था
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परिवार प्रशासन के मार्गदर्शन में निर्माण कर रहा था
तो फिर अतिक्रमण की पुष्टि किस स्तर के दोष और संचार-अभाव से हुई ?
क्या यह:
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पटवारी,
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ग्राम सचिव,
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या तहसील प्रशासन की जांच और मार्गदर्शन की विफलता नहीं ?
अब स्थिति क्या है ?
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जिस जगह से मकान तोड़ा गया, वहीं अब शिकायतकर्ता की ओर से अवैध बाउंड्रीवाल खड़ी कर दी गई है।
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परिवार बेघर है, लेकिन शिकायतकर्ता की कथित कब्जा कार्रवाई जारी है।
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प्रशासन ने न तो वैकल्पिक आवास दिया और न ही तात्कालिक राहत राशि।
यह दुहरी नीति और विभागीय लापरवाही का स्पष्ट प्रमाण है।
यह सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं — यह व्यवस्था की असंवेदनशीलता है
सरकारी योजनाएं तभी सफल होती हैं जब:
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अधिकारी जनहित की भावना से कार्य करें
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निर्णय मानवीय संवेदना के साथ लिया जाए
लेकिन यहाँ तय प्रक्रिया की अवहेलना और संवेदना का अभाव साफ दिखाई देता है।
क्या होना चाहिए ?
| कार्यवाही | उद्देश्य |
|---|---|
| तत्काल राहत शिविर / अस्थायी आवास | परिवार को सुरक्षित रहने की व्यवस्था देना |
| पुनः पीएम आवास स्वीकृत | योजना का वास्तविक लाभ बहाल करना |
| राजस्व और पंचायत स्तर पर जांच समिति | जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करना |
| शिकायतकर्ता द्वारा नए अवैध निर्माण पर रोक | न्याय और संतुलन स्थापित करना |
ग्राम पंचायत थावड़ी टेका का चंद्रवंशी परिवार आज बेघर नहीं है,
बेघर तो व्यवस्था की मानवीयता हो गई है।
जब योजना का घर ही पीड़ा का कारण बन जाए,
तो यह सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं,
समाज के संवेदनात्मक ढाँचे की विफलता है।
विकास की सच्ची पहचान यह नहीं कि कितनी योजनाएँ शुरू हुईं,
बल्कि यह कि एक गरीब की छत बची या टूट गई।