श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 129 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 129 वी कड़ी.. 

अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग

अर्जुन उवाच :-

अर्जुन बोले हे महाबाहु, सम्पूर्ण तत्व का सार कहें,

हे ऋषिकेश केशीहन्ता, मेरी जिज्ञासा शान्त करें।

व्यास तत्व अरू त्याग तत्व, पृथक पृथक कृपा कहिये,

हें उन्हें जानना चाह रहा हूँ प्रभु इतनी और कृपा करिये।-1

श्री भगवानुवाच :-

भगवान कृष्ण बोले अर्जुन, ज्ञानीजन ऐसा बतलाते,

सब कर्मो के फल को तजना, है त्याग उसे वे समझाते।

विद्वानों द्वारा त्याग यही, सन्यास कहा जाता अर्जुन,

इन तत्वों के ही बारे में, बतलाता हूँ अब उसको सुन।-2

 

विद्वानों का है वर्ग एक, जो कहता जितने कर्म रहे,

वे सभी दोषमय होते हैं, इसलिये त्याग के योग्य रहे।

लेकिन है वर्ग दूसरा जो, कहता कुछ कर्म रहे ऐसे,

जिनका कि त्यागना उचित नहीं, तप-दान-यज्ञ होते जैसे।-3

 

मतभेद त्याग सम्बन्धी ये, यद्यपि विद्वानों बीच रहा,

नरशार्दूल मेरा निश्चय, बतलाता हूँ किस तरह रहा।

ज्यों तीन प्रकृति के गुण अर्जुन, इसके भी तीन प्रकार रहे,

सब कर्म त्यागने योग्य नहीं, यह बात प्रमाणित शास्त्र करें।-4    क्रमशः ….