श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 121 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 121 वी कड़ी.. 

सोलहवाँ अध्याय ..देवासुर-सम्पत्ति-विभाग योग (देवी और असुरी स्वभाव)

श्री भगवानुवाच :-

मेरा कुटुम्ब है बहुत बड़ा, धन धान्य अतुल ऐश्वर्य रहा,

मेरे जैसा न सुखी कोई, कोई न तुल्य बलवान रहा।

मैं यज्ञ करूंगा बहुत बड़ा, मुझसे याचक धन पायेंगे,

आनंद मनाऊँगा इतना, सब चकित देख जल जायेंगे।-15

 

इस तरह विकल्प विविध रचते, चिन्ता करते बहुत भाँति असुर,

रच मोह जाल फँसते उसमें, जिससे न उबरते कभी असुर।

वे भ्रमित चित्त विषयानुरक्त, विषयों का ही करते चिन्तन,

अपने कर्मो का फल पाते, पाते हैं नरक न रूके पतन।-16

 

माने अपने को सर्वश्रेष्ठ, व्यवहार अशिष्ट करे सबसे,

धन और मान के मदमाते, वे अन्धे कुछ न देख सकते।

करते पूजन वे यज्ञ रचे, पाखण्ड बहुत वे फैलाये,

विधि विहित न कोई काम करे, प्रतिकूल विधानों के जायें।-17

 

वे अहंकार के वशीभूत, करते निरस्त प्रभु की सत्ता,

बल काम, क्रोध, मद, दर्प मिले, सबका अपूर्व आसव पकता ।

परमेश्वर जो सबमें बसता, वे उस प्रभु से विद्वेष करें,

वे मेरी निन्दा करें पार्थ, वे धर्म विरोधी काम करे।-18

 

विद्वेषी असुर नराधम वे, करते हैं अपनी मनमानी,

उनकी भावी गति क्या होती, यह रहती उनको अनजानी।

जो क्रूर कर्म जो दुराचार, करते वे उसका फल पाते,

पुनि असुर योनियों में गिरते, भव सागर पार न कर पाते।-19    क्रमशः ….