श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 99वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 99वी कड़ी.. 

बारहवाँ अध्याय : भक्ति-योग (श्री भगवान की प्रेममयी सेवा)

अर्जुन उवाच :-

हे कृष्ण विनत अर्जुन बोले, प्रभु निराकर-साकार आप,

निर्गुण अरू सगुण रूप दोनों रूपों के परे आप।

कुछ भक्त भजे साकार रूप, कुछ निराकार निर्विशेष भजे,

इनमें उपासना कौन श्रेष्ठ, अरू कौन सिद्ध सविशेष रहें।-1

भगवानुवाच :-

भगवान कृष्ण बोले अर्जुन, मेरे प्रति पूर्ण समर्पित जो,

मुझमें एकाग्र चित्त रखते, श्रद्धा पूर्वक नित भजते जो।

जिनका मन मुझमें लीन रहे, जो नित्य निरंतर करे भजन,

हैं परम सिद्ध योगी वे ही, मैं ऐसा मान रहा अर्जुन।-2

 

पर वे भी जो इनके सिवाय, आराधन निर्गुण का करते,

अव्यक्त अनिर्वचनीय नित्य, जो उसका आराधन करते।

कूटस्थ अचल सर्वत्र व्यापत, वह तत्व बुद्धि से परे रहा,

वह रहा इन्द्रियातीत मगर, निर्गुण साधक ने जिसे भजा।-3

 

पाला जिसने इन्द्रिय संयम, मन जिसके वशीभूत रहता,

सम दृष्टि रखे समभाव रखे, जो योगी परहित दुख सहता।

जो प्राणिमात्र का हित चाहे, संलग्न करे हित सम्बर्द्धन

वे भी योगी हैं परमसिद्ध, वे मुझे प्राप्त होते अर्जुन।-4

 

पर परम सत्य के भक्त जिन्हें, निर्गुण स्वरूप की चाह रही,

पारमार्थिक उन्नति पाने में, अपनी न जिन्हें परवाह रही।

संविशेष कष्ट श्रम के द्वारा, वे सिद्धि प्राप्त करने पाते,

निर्गुण का मार्ग कठिन उनको, तन का न मोह जो तज पाते।-5     क्रमशः…