
ग्यारहवां अध्याय : विश्वरूप-दर्शन योग (श्री भगवान का विश्वरूप)
परम पराक्रमशाली प्रभु, हैं आप अमित सामर्थ्यवान,
परिव्यापत आपसे विश्व रहा, सब ओर आप ही विद्यमान ।
प्रभु रहे आप ही सर्वरूप, करता सम्मुख मैं नमस्कार,
पीछे भी नमस्कार करता, वह चहुँ दिशि प्रभु मेरा नमस्कार।-40
हे प्रभो अचिन्त्य प्रभाव आप, महिमा न आपकी जान सका,
मैं कितना भूला रहा प्रभो, जो देव आपको सखा कहा।
यह प्रेम रहा अथवा प्रमाद, जो किये आपको सम्बोधन,
हे कृष्ण सखा हे यादव, कर याद विकल होता है मन।-41
अपराध किये मैंने अच्युत, मैंने संग साथ विहार किया,
शैय्या पर सोया साथ देव, भोजन भी मैंने साथ किया।
अपमानित किया अकेले में या किया सखाओं बीच कभी,
अपराध क्षमा कर दें भगवन, पाऊँगा, मन की शान्ति तभी। 42
हे विष्णों आप चराचर में, सम्पूर्ण जगत के हैं स्वामी,
हे जगत पिता गुरू पूजनीय, कोई न आप जैसा स्वामी।
तीनों लोको के त्रिभुवन पति, कोई न आप जैसा भगवन,
समता की क्षमता रही नहीं, फिर अधिक कौन होगा भगवन।-43
हे प्रभो आप हैं परमेश्वर, आराध्य प्राणियों के जग में,
शरणागत हो करता प्रणाम, हे प्रभु मैं गिरकर चरणों में।
कर कृपा क्षमा अपराध करें, मुझ पर प्रसन्न होवे भगवन,
ज्यों पिता पुत्र को करता क्षमा प्रियतम प्रेमी को करे सहन।-44
जिसको न कभी पहिले देखा, उस विश्वरूप का कर दर्शन,
हे नाथ हृदय हर्षित मेरा, पर भय से व्याकुल मेरा मन।
मुझ पर प्रसन्न हो दया करें, देवेश दिखायें पूर्व रूप
हे जग निवास उपकार करे, दिखलाये चतुर्भुजी स्वरूप।-45 क्रमशः…