श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 92वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 92वी कड़ी.. 

ग्यारहवां अध्याय  : विश्वरूप-दर्शन योग (श्री भगवान का विश्वरूप)

प्रभु आप अकेले ही ऐसे, जो रहे जानने योग्य परम,

पर ब्रह्म आप हैं जगदीश्वर, आश्रय निधान जग के भगवान।

रक्षक हैं धर्म सनातन के, है पुरुष पुरातन अविनाशी,

ऐसा मत मेरा त्रिभुवनपति हैं आप नित्य घट-घट वासी।-18

 

प्रभु आप अनादि अनन्त रहे, है मध्य रहित हे आदि देव,

ज्यों रही भुजायें अनगिनती, त्यों रहे नेत्र हे परम देव।

रवि शशि असंख्य निज नेत्रो से, सम्पूर्ण विश्व भासित करते,

प्रभु तेज आपका ही जिससे, सम्पूर्ण जीवधारी तपते।-19

आस्वर्ग धरा बहु विविध लोक, आकाश अखिल अरू अन्तरिक्ष,

परिव्याप्त आपसे ही भगवन, न चराचर में कुछ रहा रिक्त।

अतिभयकारी यह रूप प्रभो, त्रिभुवन में जिसने भी देखा,

अति व्यथित हुआ वह दर्शन कर, भय विस्मय की उभरी रेखा।-20

 

सुरगण शरणागत हुए प्रभो, कर रहे आप में ही प्रवेश भयभीत बहुत करबद्ध प्रभो,

कर रहे प्रार्थना कुछ विशेष सिद्धों का दल, ऋषिगण सारे, कर रहे प्रभुवर,

वैदिक मन्त्रों से स्तुति का, है गूंज रहा अम्बर में स्वर।-21

 

विस्मय विस्फारित नेत्रों से, सब देव आपको देख रहे,

गन्धर्व, यक्ष, सुर, असुर सिद्ध, सब देख आपको चकित रहे।

शिवरूप रूद्र ग्यारह विस्मित, विस्मित द्वादश आदित्य प्रभो,

वसु आठ साध्यगण, विश्व देव, अश्विनीकुमार द्वय पितर प्रभो।-22    क्रमशः…