श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 90वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 90वी कड़ी.. 

ग्यारहवां अध्याय  : विश्वरूप-दर्शन योग (श्री भगवान का विश्वरूप)

हे भारत देख यहाँ मुझमें, सब आदित्यों का वास रहा,

सुत बारह देख अदिति के तू, आठों वसुओं का वास रहा।

ग्यारह रूद्रों को देख पार्थ, बसते मुझमें सब देव देख,

अन्यान्य अनेक विचित्र रूप, देखे न सुने वे सभी देख।-6

 

तेरे मन में जो इच्छा हो, वह सब तू देखेगा मुझमें,

चाहेगा और देखना जो, तत्क्षण वह दीखेगा मुझमें।

जो कुछ भविष्य के बारे में, तू चाहे देखेगा अर्जुन,

सम्पूर्ण जगत यह जड़ चेतन, हो रहा दृष्टि गोचर अर्जुन।-7

 

पर अपने चर्म चक्षुओं से, मुझको न देखने पायेगा,

इसलिये दे रहा दिव्य दृष्टि, इससे तू सब लख पायेगा।

मेरा ऐश्वर्य अपार इसे देखेगा दिव्य दृष्टि पाकर,

मेरी जो योगशक्ति उसको, समझेगा दिव्य दृष्टि पाकर।-8

संजय उवाच :-

संजय ने कहा कि हे राजन, अर्जुन को देकर दिव्य दृष्टि,

भगवान कृष्ण ने दिखलाया, वह विश्वरूप उसका अभीष्ठ।

जो दिव्य अलौकिक अगम रहा, एकात्म रूप ऐश्वर्य परम,

सबको न रहा जो दर्शनीय, उसका ही करवाया दर्शन।-9

उस परमदेव परमेश्वर का, अर्जुन ने देखा विश्व रूप,

जिसके आनन थे, अनगिनती, अनगिनती नेत्र विराट रूप।

परिधान विविध अति दिव्य रहे, अति दिव्य देह के आभूषण,

दिव्यास्त्र उठाये हाथों में, विस्तार अमित, अद्भुत दर्शन।-10

 

मालायें दिव्य किये धारण, उपलिप्त कलेवर सौरभ से,

सब ओर किये वे मुख अपना, दर्शक को अचरज से भरतें कर पग

मुख की न रही सीमा परमोज्जवल व्यापक रूप दिव्य,

भगवन्त कृपा निरवधि जिस पर, वह ही लख पाता रूप दिव्य।-11    क्रमशः…