श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 62 वी कड़ी ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 62 वी कड़ी ..     

छटवाँ अध्याय : – ध्यान-योग (अभ्यास)

श्री भगवानुवाच :-

हे कुन्ती नन्दन महाबाहु, मन चंचल है, संदेह नहीं,

है कठिन इसे वश में करना, लेकिन यह रहा असाध्य नहीं।

अभ्यास निरंतर करने से, अरू अनासक्ति करके धारण,

साधा जा सकता है मन को, कर योग-क्रिया का पारायण।-35

 

मन को न किया वश में जिसने, वह आत्मरूप लख सके नहीं,

साक्षात्कार है कठिन उसे, योगाभ्यास है सफल नहीं।

पर जिसने मन को जीत लिया, उपयुक्त जुटाये अरू साधन

कहता हूँ निश्चित सफल रहे, साफल्य दिलाता उसका मन।-36

अर्जुन उवाच :-

अर्जुन ने कहा कि हे माधव, क्या गति होती उस योगी की,

जो श्रद्धावान प्रयत्न, शिथिल, विचलित मग जो, उस योगी की।

प्रारंभ साधना करता जो, पर मग में विचलित हो जाता,

आसक्ति विषय की जब खींचे, उससे उसका पथ खो जाता।-37

 

हे महाबाहु श्रीकृष्ण मुझे क्या होती गति यह बतलायें,

जो करें साधना शुरू मगर गन्तव्य नहीं अपना पायें।

भगवान गति से पथ भ्रष्ट हुआ, आश्रय विहीन वह पुरुष कहीं

हो छिन्न मेघ की भाँति कृष्ण हो तो जाता है नष्ट नहीं।-38

 

मेरे मन के इस संशय को, हे कृष्ण आप ही दूर करें,

कोई न दूसरा है सक्षम, संशय मेरे सम्पूर्ण हरें।

अतिरिक्त आपके है हे भगवन, कोई न मुझे मिलने वाला,

संभव न रहा, मेरा संशय, अन्यान्य रहा हरने वाला।-39

श्रीभगवानुवाच :-

भगवान कृष्ण ने कहा पार्थ, योगी जो हितकर कर्म करें,

वह रहे स्वर्ग में या भू-पर, जीवित रहता, वह नहीं मरे।

है सखे सदाचारी है जो, उसका न कभी अनहित होता।

होता न अमंगल कभी पार्थ, परमार्थ न यदि पूरा होता।-40    क्रमशः…