श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की पांचवी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की पांचवी कड़ी..       
            
पहला अध्याय : अर्जुन विषाद योग
फिर धनुर्धारी काशी नरेश, राजा विराट, सात्यिकी, अजेय,

धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, महारथी, सौभद्र, द्रुपदनृप, द्रौपदेव।

नृप विराट ने शंख फूंककर दर्शित की अपनी तैय्यारी,

धृष्टद्युम्न सात्यकी, बली ने, शंख बजाये बारी बारी।-17

 

फूँका शंख द्रुपत नरपति ने, शोर हुआ घनघोर भयंकर

शंख द्रोपदी के पुत्रो ने, फूँके स्वर छाया प्रलयंकर।

शंखु सुभद्रानंदन ने भी, फूंका शंखनाद की धारा

फिर से प्रतिध्वनियों में गूँजी, जिसका मिले न कूल किनारा।-18

 

इन वीरों के शंखनाद ने, गूँजा दिया भू-अम्बर सारा,

हृदयों को धृतराष्ट्र सुतो के, मानो चला चीरता आरा।

तुमुल शंखनाद से गुंजित, धरती हुई हुआ नभ सारा,

हुआ विदिर्ण हृदय कुरू दल का, महीपते! दहला दल सारा।-19

 

तदनन्तर पाण्डुपुत्र अर्जुन, कटिबद्ध हुआ ले धनुष बाण,

शर का उसने संधान किया, धनु प्रत्यंचा पर तीन तान।

कपि ध्वजधारी रथ के अपने, करके कुरू दल का अवलोकन,

भगवान कृज्ण के प्रति उसने, हो विनत कहे इस भांति वचन।-20    क्रमशः…