श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 57 वी कड़ी .. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 57 वी कड़ी ..     

छटवाँ अध्याय : – ध्यान-योग (अभ्यास)

मन श्रेष्ठ बन्धु उसका बनता, जिसके वशवर्ती रहता मन,

मन परम शत्रु उसका बनता, वशवर्ती रहा न जिसके मन।

मन हेतु मुक्ति का बनता है, या बनता बन्धन का कारण,

डर में परिनिष्ठित प्रभु होते, मन करता आज्ञा का पालन।-6

 

अपना मन जिसने जीत लिया, वह पाता मन की शान्ति प्रथम

फिर पूर्ण रूप परमात्मा का, अवधारित करता उसका मन।

ऐसे जन को समरूप हुए, जग के सुख-दुख का शीत-घाम,

द्वन्द्वों का होता शमन सहज, होते समान मानापमान ।-7

 

विज्ञान-ज्ञान से तृप्त पुरुष, पाता कृतार्धता अविचलता,

साक्षात्कार करता अपना वह ज्ञानी योगी कहलाता

वह ब्रह्मतत्व में अवस्थित, सब में समता का भाव रखे,

ऐसा जितेन्द्रिय मिट्टी को पत्थर, सोने को सम समझे।-8

 

वह योगी परम विशेष रहा, जिसकी सब में सम दृष्टि रही,

जो रही भावना मित्रों को, दुश्मन के प्रति भी वह रही।

है उदासीन मध्यस्थ सुदृढ़, ईर्ष्यालु रहा या सम्बन्धी,

या साधु रहा या पापात्मा, सबके प्रति बुद्धि समान रही।-9

 

परमात्मा में एकाग्र चित्त, करने का यत्न करे योगी,

अभ्यास निरंतर किया करे, मन को वश में करने योगी।

रह पूर्ण सजग एकान्त साध, अविराम साधना निरत रहे,

हो मुक्त कामनाओं से वह, मन से संग्रह का भाव तजे।-10

 

योगाभ्यास के लिये प्रथम एकान्त चाहिए योगी को,

हो शुद्ध भूमि कुश मृगदाता, मृदु वसन स्वच्छ फिर योगी को।

आसन जिस पर बैठे योगी, अति ऊँचा या नीचा न रहे,

दृढ़तापूर्वक फिर बैठ वहाँ, योगी अपना अभ्यास करें।-11   क्रमशः…