रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है। हो गई नष्ट जब बुद्धि मनुज, भव-पातन-कूप में खो जाता।-63
संयम का पालन कर जिसने, वश में कर ली इन्द्रियाँ सभी,
वह मन विजयी विधेयात्मा, पा जाता भगवत्कृपा सभी।
वह भोग इन्द्रियों का करता, पर राग-द्वेष से मुक्त रहा,
अन्तस में विषयासक्ति तजी, वह पतन गर्त में नहीं पड़ा।-64
दुःख सारे उसके मिट जाते, जिस पर यह भगवत्कृपा हुई,
आल्हादित चित्त रहे उसका, मन की सब चिन्ता व्यथा गई।
इसमें कोई संदेह न कर, सुस्थिर होती प्रज्ञा उसकी,
जब सभी चेतना अन्तस की, आत्मा की ओर सतत बहती।-65
जो बुद्धियोग से युक्त नहीं, वश में न चित्त उसके होता,
रहती न बुद्धि सुस्थिर उसकी, वह शक्ति सभी मन की खोता।
सुस्थिर न बुद्धि जिसकी वह जन, मन की न शान्ति पाने पाये,
मन की न शान्ति जिसने पाई, उसको सुख कैसे मिल पाये।-66 क्रमशः…