श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 22वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 22वी कड़ी..   
   
दूसरा अध्याय : सांख्य योग
अपशब्द कहेंगे शत्रु बहुत, तू प्राप्त तुच्छता को होगा,

सामर्थ्य उपेक्षित उपहासित, क्या तुझसे जायेगा भोगा।

निश्चय ही इससे अधिक कष्ट, हो सकता तुझको अन्य नहीं

वीरों को ऐसी कायरता, शोभा देती क्या कभी कहीं।-36

 

कौन्तेय युद्ध में मरकर तू, पायेगा स्वर्ग सुनिश्चित है,

या जीत गया तो पृथ्वी का, साम्राज्य मिलेगा निश्चित है।

इस कारण तू संकल्प सहित, उठ और युद्ध का निश्चय कर,

वीरों का नाम अमर करता, यह धर्म युद्ध कर्तव्य समर।-37

 

सुख-दुःख के भाव समान रहे, समभाव पराजय-जय में हो,

समता से देखे हानि-लाभ, चिन्तन समता की लय में हो।

निष्काम भाव लेकर मन में, सन्नद्ध युद्ध को हो अर्जुन,

यह कर्म न होगा पाप तुझे, नहीं हो सकेगा कलुषित मन।-38

 

अब तक बतलाया सांख्य योग, जो आत्म तत्व, इन्द्रिय-निग्रह,

अब बुद्धि योग बतलाता हूँ, निष्काम कर्म का जो विग्रह।

जन बुद्धियोग से युक्त पार्थ, बन्धन से रहता मुक्त सदा,

जो कर्म किया जाता है वह, उसके बन्धन से नहीं बँधा।-39    क्रमशः…